
देख किसान की हालत को
मोरो मन बहुत दुख रऔ है।
काय चुनी ऐसी सरकारखो
जिसखो किसानो का दर्द दिखत नाईयै।।
कभाऊ खेत में हल न चलाओ।
तो क्या जाने खेती
और किसानो को हाल।
कैसे खेत जोते जाते हैं
नेता क्या जाने खेतो को हाल।
बैठ वतालुकूल हालो में
बिन सोचे बना दऔ कानून।
पूंजीपतियों के चक्कर में पड़ कर
नशा कररये कृषि क्षैत्र को।
अब भी वक्त है तुम सबपे
निरस्त कर दो कृषि कानून।
और माफी मांग लो तुम सब
भारत के अन्न दातोओ से।।
वरना अब की बार तुम्हारो
हो जायेगो हाल वो।
फिरसे सदन में दो चार देखोगे
कान खोलके सुनलो आज।
सारी नेताओ की नेतागिरी
फिर ठंडे वास्ता में रख जायेगी।
गाँव गाँव घूमत फिरयो तुम
कछु हाथ नहि आयोगो।
जिन ने तुम्हें बैठाओ गद्दी पे
उन्हीं संग कर रहे तुम गद्दारी।
जय चंदो को क्या हाल भाओतो
पड़ लो एक बार इतिहास तुम।
लूटा दऔ तुमने खजानो
ट्रंप की के स्वागत में।
अब कछु बचो नही तुमपे
पड़े लिखे नव युवको देने को।
काय लूटा रहे भारत कीअब तुम
कृषि क्षैत्र की व्यवस्था को।
घमंड टूट गायो थो बलसाली
रावण और कांश को।
तो तुम किस खेत की मूली हो
तनक धीरज बस तुम रख लो।
सब कुछ तुम रो नष्ट हो जाएंगो
मत टकरावओ किसानो से।
आरपार इस लड़ाई में
अब फौजी भी कूंद पड़े।
जिनकी नाम पर तुम
अबकी बार सरकार बना बैठे।
अब वो भी तुमरो साथ छोड़ कर
किसानो का समर्थन कररये।
पूंजीपति किसी के न होवे
जहाँ मिलोगो उन्हे धन।
लुड़क जायेंगे ओई तरफ को
जिसकी जब होकूमत होगी।।
इसलिए समझा रहे हम
मत पड़ो पूंजीपतियों के चक्कर में तुम।
किसान कानून को रद्द करके
कर लो किसानो से सुलाह तुम।।
देख किसान की हालत को
मोरो मन बहुत दुख रऔ है।
काय चुनी ऐसी सरकारखो
जिसखो किसानो का
दर्द दिखत नाईयै।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)