Read Time46 Second

अंतर के दर्पण में नव मीत बनाना बाकी है।
नव सृजन कर छंदों का नवगीत सजाना बाकी है।।
दुनिया के मिथ्या झगड़ों से खुद को बचाना बाकी है।
रूढ़ियों और कुरीतियों से लड़ना अब भी बाकी है।।
विश्वासों के भंवर जाल में जीना मरना बाकी है।
असली और नकली चेहरों में
अंतर करना बाकी है।।
नफरत की दीवारों को घर मे गिराना बाकी है।
रिश्तों की बगिया को फिर महकाना बाकी है।
आगत के स्वागत में अतीत भुलाना बाकी है।
कोरे कागज में इंद्रधनुषी रंग सजाना बाकी है।।
- डॉ.राजेश पुरोहित
Post Views:
458