
मैं और मेरे मे भेद है भारी
आत्मा हूँ मैं और शरीर बाहरी
मैं हूं एक ज्योति बिंदु आत्मा
उसी रूप मे मिलते परमात्मा
शरीर मेरा रथी कहलाता
आत्म ऊर्जा से जीवन नाता
देहाभिमान मे रहना छोड़ो
आत्म बोध का मधुर रस घोलो
विदेहीपन मे जो खो गया
वही परमात्मा का हो गया
मैं का अर्थ अभिमान भी है
यह एक बड़ा विकार भी है
लौकिकता से परे जो हो गया
वही रूहानियत मे खो गया
परमात्म मिलन का मार्ग है यह
पतित से पावन का आधार है यह।
#श्रीगोपाल नारसन