अष्टम अनुसूची की हिन्दी-हित में पुनः समीक्षा अपेक्षित है।

0 0
Read Time3 Minute, 30 Second

विगत आधी सदी से भी कुछ अधिक अवधि से मैं अवलोकन करता आ रहा हूँ कि क्षेत्रीय बोली के नाम पर अधिकतर व्यक्ति, कुछ से कुछ लिखते हुए गुणवत्ता के प्रति सचेत नहीं रहते हैं। फलतः अपेक्षित स्तर का प्रायः अभाव रहता है। विषय-वस्तु, भाव एवम् भाषिक रूप से भी। और, इसीलिये; स्थानीय स्तर पर ही ऐसे लोग सिमट कर रह जाते हैं। कुछ कहने-बताने पर कुतर्क का सहारा लेने लग जाते हैं कि लोक भाषा है।  क्या, लोक भाषा में सामान्य बोल-चाल तथा साहित्य की भाषा में अन्तर नहीं होना चाहिये? परिनिष्ठितता का कोई स्थान नहीं?  जिन लोगों ने साधना की चाहे, वह कोई भी क्षेत्रीय बोली रही अथवा खडी़ बोली हिन्दी; उन्हें पर्याप्त यश प्राप्त हुआ।

 डा.परमानन्द पाण्डेय, प्रो. हरिमोहन झा, नागार्जुन ,रामेश्वर सिंह कश्यप इस बात के बहुत बड़े उदाहरण रहे । हिन्दी के उक्त महान् साधक, अंगिका, मैथिली और भोजपुरी की अनुपम पहचान बन कर अमर हो गये। क्षेत्रीय भाषाओं के साधकों को भी अवश्य ही सम्मान व पुरस्कार प्राप्त होना चाहिये। लेकिन, यह भी सत्य ही कि बरगद के नीचे कोई अन्य पौध पनप नहीं सकता। येन-केन-प्रकारेण, पौधा कोई पनप भी गया तो वह कुपोषण का शिकार हो ही जाता है। यों, प्रारम्भ से ही; सरकारी नीति बहुत स्वस्थ नहीं रही है। वोट – कुर्सी – सत्ता की सतायी हुई संस्कृति, संस्था एवम् साहित्य के मध्य, किसी भी भाँति ये, अर्थात् संस्कृति, संस्था, साहित्य जीवित बच रहे हैं तो साहित्यकार, संगीतकार, कलाकार की अपनी मेधा, क्षमता, लगन और राष्ट्रीय तथा नैतिक ईमानदारी के बल पर ही।  वैसे,जो पत्र-पत्रिकायें, नायक-नायिकायें, गायक-गायिकायें, निर्माता-निर्देशक के साथ-साथ नेतागण तक जो हिन्दी में आये, वे अधिक प्रसिद्ध हुए। 

अनावश्यक को अष्टम अनुसूची तथा आवश्यक की उपेक्षा से असंतोष तो पनपेगा ही ना, नीति-नीयत बदलनी होगी।  अष्टम अनुसूची की हिन्दी-हित में;पुनः समीक्षा हर हाल में अपेक्षित है।  मैं किसी के पक्ष या विपक्ष की बात नहीं कह रहा। मैं तो बिल्कुल वही कह रहा हूँ, जो तटस्थ भाव से एक भारत-भक्त को कहना चाहिये। फिर भी, यदि मेरा कथन किसी को चोट पहुँचाता हो तो, विनम्रतापूर्वक क्षमा-याचना ।। –ओम प्रकाश पांडेय

  वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई

matruadmin

Next Post

संतान

Fri Oct 23 , 2020
संतान वही जो सेवा करती माता पिता का ध्यान रखती उनकी हाँ में हाँ ही मिलाती उन्हें कभी न आंख दिखाती उनके सामने सिर झुकाती उनका सदा मान बढाती सामने उनके बच्चा बन जाती डांट पर भी सहज मुस्काती मरने पर भी न भूल पाती उनके नाम को आगे बढाती […]

नया नया

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।