
कुछ स्वप्न थे मेरे धुंधलेे से
कुछ चाहत मेरी उजली थी
कोई आहट थी धीमी सी
उनके लिए मै पगली सी थी।
कुछ मन में भाव अजीब से थे
दिल में मिलने कुछ चाहत थी
न मै मिल सकी न तुम मिल सके
दोनों के दिल में घबराहट थी
कुछ पगडंडी टेढ़ी सी थी
दिल में कुछ झुंझलाहट थी
मन मसोस के रह जाते थे
बस मिलने की एक आहट थी
न कह सकी मै मन की बाते
न कह सके तुम मन की बाते
बीत रही थी कुछ इस तरह ही
जीवन की ये दिन और राते।।
तुम भी कुछ मजबूर थे
मै भी कुछ मजबूर थी
मिल न सके हम दोनों
दोनों की कुछ मज़बूरी थी।।
एक तरफ कुछ खाई थी
दूसरी तरफ भी खत्ती थी
दोनों ही मौत की कुएं थे
दोनों में बहुत गहराई थी।।
फूलों में कुछ अजीब खुशबू थी
कांटो में कुछ अजीब चुभन थी
चले जा रहे थे दोनों राहों में
दिलो में दोनों के अटकन थी।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम