
बोर्ड पर लिखी इबारत को ,
नई इबारत लिखने के लिए मिटाना पड़ता है।
हाथों में लगी मेहंदी को ,
रंग देखने के लिए मिटाना पड़ता है।
सूखे हुए पौधे को ,
नया पौधरोपण के लिए हटाना पड़ता है।
समाज में व्याप्त विकृतियों को ,
नई ऊर्जा का आगाज करके मिटाना पड़ता है।
नए विचारों को आगे बढ़ाने के लिए,
मन भेद मतभेदों को मिटाना पड़ता है ।
रात के गहन अंधेरे को,
भोर की नई किरणों से मिटाना पड़ता है।
विनाशकारी हो अगर अहंकार ,
तो नव निर्माणके लिए उसे मिटाना पड़ता है।
गलतफहमियां से उपजे गर्त में जा रहे रिश्तो को,
पवित्र विचारों के संवादों से मिटाना पड़ता है ।
हो अगर राष्ट्र का विध्वंस,
तो जन आक्रोश के आंदोलनों से मिटाना पड़ता है।
# स्मिता जैन