
बारिश की बूंदों का जादू
जगाता सा है अहसासों को
आहटें टिप टिप बूंदों की
स्पंदित करती हैं मन मयूर को
बहती है कल कल धारा
वीणा के तारों की तरह
भावनायों मे एक अप्रियतम
शोर सा जगाती है
उनींदी सी आँखों में
जगाती है सपनों को
हवा के झोंके की छुअन
बेकरार सा कर जाती हैं
जुदाई की तपिश को
अपनी चन्द जादुई बूँदों से
हर लेती है ताप को
खनकती चहकती सी घटा
खो देती हैं अपने होने को
दे देती है रूप अपना
अल्हड़ से अजनबी बादल को
पैदा कर देती हैं कई
नये सोते, झरने, नदियों को
जीवन की रागत्मकता का
स्वर फिर
प्रस्फुटित होता है
इस तप्त सी धरती पर
नये जीवन का गुंजन
भर जाता हैं
शस्य श्यामला सी धरा पर
उसकी सोंधी सी माटी से
महक जाता है संसार
स्मिता जैन