रानी दुर्गावती

0 0
Read Time7 Minute, 36 Second

आज के मध्यप्रदेश के जबलपुर क्षेत्र को 15 वी शताब्दी में गोंडवाना राज्य के नाम से जाना जाता था, यहां गोंड भील वंश का शासन था। वे बड़े बहादुर, योद्धा, पराक्रमी हुआ करते थे। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के महोबा में चंदेल वंश में एक बेटी का जन्म होता है दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण इसका नाम दुर्गावती रखा जाता है। दुर्गावती बचपन से ही निडर व साहसी रही अपने पिता से इन्होंने तीरंदाजी घुड़सवारी तलवारबाजी आदि युद्ध कलाएं सीखी । उस समय चंदेल वंश राजपूतों का एक बड़ा वंश हुआ करता था, चंदेल वंश के संबंध चित्तौड़ के मेवाड़ी घरानों में भी थे, बड़े होने पर दुर्गावती का विवाह गोंडवाना के राजा के बेटे दलपत शाह से हुआ। दलपत शाह का शासन गढ़ मंडला क्षेत्र में था। राजपूत चंदेल वंश की बेटी गोंडवाना (भील) वंश की कुल वधु बनी अर्थात हम समझ सकते है कि जिस जाति व्यवस्था का भ्रम आज बनाया जाता है, भारत में वह जाति व्यवस्था कभी भी सर्व व्यापी नही रही। सभी कुल व वंश एक दूसरे से वैवाहिक संबन्ध किया करते थे । दलपत शाह से विवाह के बाद 1545 में दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम वीर नारायण रखा गया । पुत्र के जन्म को अभी 5 वर्ष भी नही बीते थे कि दलपत शाह की मृत्यु हो गई। रानी दुर्गावती पर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा। राजा विहीन राज्य देखकर सभी पड़ोसी राज्य गोंडवाना पर गिद्ध दृष्टि जमाये हुए थे। उस समय भारत के अधिकांश हिस्से पर अकबर का मुगल शासन था, गोंडवाना के आस पास अन्य कई मुस्लिम शासक बन चुके थे। वे सभी गोंडवाना पर मुगलिया परचम देखना चाहते थे। परन्तु रानी दुर्गावती ने अपने बेटे नारायण को सिंहासन पर बैठा कर राजकाज की बागडोर अपने हाथ में ले ली। अधिक से अधिक गोंड युवकों को सेना में भर्ती करके उसने शक्तिशाली सेना का निर्माण किया । आसफ खान हजारों की सेना के साथ गोंडवाना पर आक्रमण करने आ चुका था, रानी दुर्गावती ने बड़ी चतुराई से उसका सामना किया, पहले अपनी एक टुकड़ी को जंगल में छुपा दिया फिर जब युद्ध में आसफ खान की सेना लड़ रही थी, और रानी की सेना हारने लगी तब इस टुकड़ी ने तीरों से शत्रुओं के हौंसले पस्त कर दिए। मुगल सैनिक जान बचाकर भागने लगे, इसके बाद हुए अनेक हमलों में रानी दुर्गावती को सफलता मिलती रही। युद्धों में प्राप्त हुई धन संपदा से रानी ने गोंडवाना को सक्षम बनाया, कई तालाब व धर्मशालाएं बनवाई। आज भी उनके द्वारा बनवाये गए तालाब जनजीवन का मुख्य आधार है, कई बार आक्रमणों के प्रयासों के बाद गोंडवाना आर्थिक रूप से कमजोर हो रहा था। मालवा के शाह ने भी गोंडवाना पर आक्रमण किया, रानी दुर्गावती ने अपने साहस व युक्ति से उसे भी परास्त कर दिया था। दिल्ली मुगलिया सल्तनत इस पूरे घटनाक्रम को बड़ी चपलता से देख रही थी।महान मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। अकबर ने कई बार सेनापतियों को भिजवा कर गोंडवाना पर आक्रमण किया, दुर्गावती ने पराक्रम से मुगल सेना को परास्त किया, किन्तु अंतिम युद्ध में जब रानी के पास 300 सैनिक ही बचे तब रानी ने बालक नारायण को सुरक्षित किले में भेज दिया और वीरता से मुगलों से लड़ने लगी। मुगल सेना ने रानी को जीवित पकड़ने का विचार बनाया, रानी के हाथी को घेरकर हजारों सैनिकों ने उन पर हमला कर दिया, रानी का महावत इस हमले में मारा गया। अब रानी हाथी को संभालते हुए युद्ध कर रही थी, तभी 1 तीर रानी की आंख में लगा, दूसरा बांह में, तीसरा गर्दन में घायल होकर भी रानी ने लड़ना नही छोड़ा। अंत समय जानकर रानी दुर्गावती ने स्वयं को मुगलों द्वारा बंदी बनाकर अत्याचार करके घृणित म्रत्यु की अपेक्षा स्वाभिमान की म्रत्यु मरना स्वीकार किया। रानी स्वयं अपनी कटार अपने पेट में उतारकर वीर गति को प्राप्त हुई। आज भी उनकी वीरगति के स्थान पर गोंड आदिवासी उनकी पूजा किया करते है, जबलपुर से थोड़ी दूरी पर मंडला रोड़ पर बरेला गांव में रानी दुर्गावती की समाधि है। रानी दुर्गावती का बलिदान किसी भी स्तर में अन्य महापुरुषों से कम नही था। एक तरफ मेवाड़ में महाराणा प्रताप लड़ रहे थे तो यहां गोंडवाना में रानी दुर्गावती। राणा प्रताप ने रानी दुर्गावती को अपनी बहन माना था, उनकी वीर गति का समाचार सुनकर उन्हें बहुत दुख हुआ। सन 1857 में जो शौर्य और पराक्रम झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने दिखाया। वही शौर्य और पराक्रम 15 वी शताब्दी में रानी दुर्गावती गोंडवाना में दिखा चुकी थी, आज भी जबलपुर व बुंदेलखंड क्षेत्र में रानी दुर्गावती के किस्से व कहानी प्रचलित है, लोग उन्हें देवी के रूप में मानते है। दुर्भाग्य से वीरता और साहस का यह अप्रतिम अध्याय हमें किताबो में पढ़ने को नही मिलता। केवल एक कहानी के रूप में रानी दुर्गावती को दर्शा दिया जाता है जो उनके व्यक्तित्व से न्याय नही है। यदि भारत की बेटियों को वीरांगना बनना है तो उन्हें रानी दुर्गावती से ही प्रेरणा लेना चाहिए।

मंगलेश सोनी
मनावर (मध्यप्रदेश)

matruadmin

Next Post

कुशीनगर यात्रा

Mon Jun 22 , 2020
कुशीनगर की यात्रा केवल भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण स्थल का भ्रमण नहीं बल्कि जन्म और मृत्यु के बीच जीवन यात्रा के उद्देश्य और अभीष्ट को जानने समझने का एक मार्ग है। भगवान बुद्ध के जन्म, बोधिसत्व की प्राप्ति और उनके महापरिनिर्वाण से जुड़े स्थलों को देखने की इच्छा बचपन से […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।