मानव प्रकृति से सीखेः प्यार करना

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मानव जीवन प्रकृति पर निर्भर है ।प्रकृति से मिलने वाली पाँच तत्व जिससे हमारा शरीर भी है हवा, जल, अग्नि, धरती आकाश ये ऐसे तत्व है जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है।जिस तरह मनुष्य का शरीर पाँच तत्वों से बना है। ठीक उसी प्रकार हमारी प्रकृति भी हमहीं से बना और हमारे लिए ही बना है।जिसकी देखरेख और उसके विकास की जिम्मेदारी भी हमारी ही है।हमारे पूर्वज हमें एक अमूल्य उपहार प्रकृति के रूप में देकर हमें गये हैं जो आज हमपर रूष्ठ है ।आखिर क्यों न हो? हमने उसके साथ हमेशा सौतेला व्यवहार किया है।विकास की अंधी रफ्तार ने प्रकृति का दोहन हमेशा किया।अंधाधुंध पेड़ काँटे गये।पहाड़िया तोडी गयीं, नदी को बाँधा गया ये सभी कार्य ने प्रकृति की दिशा को बदलकर रख दिया और ब्रेक लगा दी प्राकृतिक चक्रो पर।यहीं से उत्पन्न हुआ हमारी विनाशलीला कभी बाढ़, सूखाड़, भूकंप, आँधी के रूप में प्रकृति के द्वारा विनाश ताण्डल जारी है।

इन बढ़ते प्रकोप से बचने के लिए ही संयुक्त राष्ट्रसंघ ने 5जून 1973 को पर्यावरण दिवस घोषित किया और पर्यावरण संरक्षण के प्रति विश्व को जागृत करने लिए इसे पूरे विश्व में मनाने की अपील भी की तभी से यह पूरे विश्व में मनाया जाने लगा।विभिन्न सेमिनारों लेखो कवियो के द्वारा पर्यावरण को लेकर लंबे लंबे भाषण लिखे और सुने जाते हैं लेकिन प्रकृति का दोहन आज भी वदस्तूर जारी है ।जो अब विकट परिस्थति में पहुँच गया है।जिसका प्रमाण हमें ग्लेशियर का तेजी से पिघलना, भूजल स्तर का दूर होना, हवा का प्रदूषित होना, समय चक्रों का अनायास बदलना आदि से मिलता है।

इस अलौकिक संसार में प्रकृति ही एक है जो सभी के साथ समान व्यवहार सभी को निशुल्क ही सब कुछ देती है जो उसके पास है।उसके संदेश मानव के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं जिससे उसे हमेशा सीखने की जरूरत है।

आज विश्व के बड़े बड़े शहर की हवा प्रदूषित है पीने का जल प्रदूषित है और तो और खाने वाले फल सब्जी भी बढ़ते रासायनिक प्रयोगो से दूषित है।जिसके कारण कई जान लेवा रोग से हमें लड़ना पड़ता है।एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे बीमारी 10 में से 8 प्रदूषित जल अथवा हवा या और किसी प्रदूषित वस्तु के इन्फेक्शन के कारण होते हैं यह आँकड़ा वेहद चौकाने वाला और डरावना है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कईबार बढते प्रदूषण को लेकर गहरी चिंता जताई तथा सभी को इसके स्तर में सुधार के प्रयासो पर जोर देने की अपील की है।विभिन्न देश की सरकारो ने भी पर्यावरण सुधार के प्रयास बड़े पैमाने पर किये है ।जगह जगह रोड किनारे, रेलवे किनारे अनेक वृक्षारोपन कार्यक्रमों द्वारा पेड़ लगाये जा रहे है। हरित क्रांति पर जोर दिया जाने लगा है यह एक शुभ संकेत है ।

“आशुतोष”

नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
पटना ( बिहार)
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।