तड़प गई जिंदगी

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prabhat dube
वक्त के हाथों जिंदगी,
यूँ फिर से तड़प गई,
भरा पड़ा है दर्द अन्दर,
पर यूँ ही छिप गई।

सागर में उठा था बबंडर,
पर यूँ ही रुक गई,
वक्त के हाथों जिंदगी,
बस यूँ फिर से तड़प गई।

घुटन इतनी तीव्र थी,
मैं देखकर हैरान हूँ,
मुझे सुनाएगी क्या जिंदगी,
मैं खुद ही तो परेशान हूँ,
वक्त के हाथों जिंदगी,
यूँ फिर…………..।

भर चला आक्रोश अन्दर,
बंद कर दो मेरी श्वांस को,
रोकोगे मेरी श्वांस को,
या खुद सौंप दूँ उस बेजान को,
कि वक्त को क्यूँ ऐसा बनाया।

मुझको वो देती तड़प ,
कभी आओ इस जिंदगी में,
वक्त तो देती है कैसी तड़प..
वक्त के हाथों जिंदगी,
यूँ फिर से तड़प गई,
भरा पड़ा है दर्द अंदर,
पर यूँ ही रुक गई।।

                                                                     #प्रभात कुमार दुबे 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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