इसमें कोई संदेह नहीं है कि कोरोना वायरस ने लाॅकडाउन में लेखन को नया आयाम दिया है। क्योंकि पूरा दिन और रात खाली बैठने से लोग तरह-तरह के व्यंजन, हस्तकला, झाड़ू-पोछा इत्यादि लगाने से पीछे नहीं हटे। फिल्में भी इतनी देखना संभव नहीं था। फिर करें तो क्या करें? प्रश्र गंभीर है।
अब जब उपरोक्त कर्म करने से पुरुष पीछे नहीं हटे तो लेखनकला की तो बात ही कुछ और है। आमों के आम और गुठलियों के दाम वाली कहावत पूर्णतः चरितार्थ हो रही है। चूंकि एक तो लेखन से समय कट जाएगा दूसरा लेखक होने पर गौरवान्वित महसूस होगा।चार लोग जानने भी लगेंगे। इसके अलावा लेखनकला से अपने मन की बात दूसरों तक पहुंचाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी है। जिससे प्रशासन की नींद उड़ाई जा सकती है और राष्ट्रभक्ति अलग हो जाती है। इससे भी अधिक बल उस समय मिलता है, जब मातृभाषा में लिखने पर मातृभाषा सेवक और राष्ट्रीय भाषा लिखने पर राष्ट्र स्तर पर ख्याति प्राप्त होती है। जिसकी लालसा प्रत्येक मानव में होती है। यूं भी मन की बात करने के लिए हम प्रधानमंत्री तो बनने से रहे।
उल्लेखनीय यह भी है कि हमें माता सरस्वती की सेवा का अवसर भी मिलेगा और कृपा भी प्राप्त होगी।
अतः कोरोना वायरस ने लाॅकडाउन में लेखन को अत्याधिक नया आयाम दिया है।
इंदु भूषण बाली