मज़दूर

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कामिनी देवी जब कभी भी अपने राइस मिल पर जाती थीं, माधो से ज़रूर मिलती थीं। माधो उनकी राइस मिल में कोई बड़ा कर्मचारी नहीं, बल्कि एक मज़दूर था। राइस मिल में काम करने वाले सभी लोगों का मानना था कि माधो कामिनी मैडम का सबसे विश्वासी कामगार है क्योंकि वह कभी झूठ नहीं बोलता।

माधो गठीले बदन वाला छब्बीस वर्षीय अविवाहित नौजवान था। उसकी मेहनत और ईमानदारी की प्रशंसा उसे जानने वाला प्रत्येक व्यक्ति करता था। बयालीस वर्षीया कामिनी देवी के पति वाल्मीकि सिंह एक सफल उद्योगपति थे। तक़रीबन एक वर्ष पूर्व सड़क दुर्घटना में वाल्मीकि सिंह की रीढ़ की हड्डी टूट गई। रीढ़ की हड्डी का इलाज हुआ, लेकिन डॉक्टरों ने कह दिया कि पूरी ज़िंदगी बिस्तर पर लेट कर ही गुजारनी पड़ेगी।

श्रम दिवस होने के कारण चीनी मिल के सभी कर्मचारी छुट्टी पर थे। कामिनी देवी ने माधो को फ़ोन कर चीनी मिल पर आने को कहा। माधो बिना कोई सवाल किए चीनी मिल पहुंच गया। कुछ ही देर में कामिनी देवी भी अपनी कार से चीनी मिल पहुंच गईं। वहां पहुंचकर कामिनी देवी माधो को अपने केबिन में ले गईं और उसे अपने सीने से लगा कर बेतहाशा चूमने लगीं। कुछ मिनटों तक माधो कुछ भी समझ नहीं पाया। लेकिन जैसे ही उसके दिमाग़ ने काम करना शुरू किया, उसने कामिनी देवी के भूखे जिस्म से खुद को अलग कर लिया।

कामिनी देवी ने प्यासी नज़रों से देखते हुए माधो से कहा – “आओ माधो!”

“नहीं मैडम, यह गलत है! पाप है!” माधो ने कहा।

“किस पापी ने कहा है तुमसे कि यह ग़लत है ? यही सच्चा सुख है माधो। अब देखो ना, कहने को तो मेरे पास सब कुछ है, लेकिन इसके बिना सब व्यर्थ है।” कामिनी देवी ने समझाते हुए कहा।

माधो को चुपचाप सर झुकाए खड़ा देख कामिनी देवी बोलीं – “माधो, तुम तो कभी झूठ नहीं बोलते। इसलिए मैं जो पूछने वाली हूं, उसका सही जवाब देना।”

माधो ने सहमति में अपना सिर हिलाया।

“क्या तुम्हें शारीरिक सुख एवं प्यार की आवश्यकता महसूस नहीं होती ?” कामिनी देवी ने पूछा।

“होती है।” माधो ने जवाब दिया।

“तो फिर सोच क्या रहे हो माधो ? आओ मेरे पास और प्यार के समंदर में डूब जाओ।” कामिनी देवी ने मादकता भरी नज़रों से माधो को देखते हुए कहा।

“नहीं मैडम, हम मज़दूर हैं। हमारा काम मेहनत, निर्माण व सम्मान करना है, विध्वंस करना नहीं। फिर चाहे वह इज़्ज़त अथवा रिश्ता ही क्यों ना हो।” इतना कहकर माधो वहां से चला गया।

#आलोक कौशिक

पबेगूसराय (बिहार)

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