करेला और ऊपर से नींमचड़ा वाली कहावत उपरोक्त प्रश्न "कोरोना की जंग में गरीब मजदूरों का योगदान क्या है?" पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही है।
क्योंकि उक्त प्रश्न में 'गरीब' और 'मजदूर' शब्द का प्रयोग एक साथ किया गया है।जबकि यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक गरीब, मजदूर हो और प्रत्येक मजदूर गरीब ही हो।
सर्वविदित है कि अन्नदाता कहलाने वाले किसान भारत में सब से अधिक गरीब हैं। जिन्हें अपने छमाही कड़े परिश्रम के बदले सरकार द्वारा मजदूर के लिए निर्धारित मजदूरी भी नहीं मिलती। फिर भी इन विकट परिस्थितियों में आप अन्नदाता को मजदूर नहीं कह सकते। क्योंकि किसान ने कोरोना जैसी महामारी में भी देशवासियों के लिए अन्न उत्पादन कर महा योगदान दिया है।ताकि कोरोना महामारी से बचने के उपरांत कोई देशवासी भूख से ना मरे। जिस पर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी का नारा 'जय जवान जय किसान' भी सटीक बैठता है।
रही बात मजदूरों की तो उन्होंने संगरोध अर्थात लाॅकडाऊन में सिद्ध कर दिया है कि भले ही 70 वर्षीय भारतीय स्वतंत्र सरकार 40 दिन में ही आर्थिक बेबसी का रोना रो रही है।परंतु वह संगरोधी योद्धा सरकार की भांति "हैंड टू माउथ" अर्थात निर्धनता का जीवन नहीं जी रहे हैं।
अतः कोरोना युद्ध में गरीबों, मजदूरों और किसानों का योगदान अकल्पनीय, अवर्णनीय, अनमोल, सर्वोच्च एवं अद्वितीय है।
इंदु भूषण बाली