मुझे आजमाता रहा

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aalok

जुबां बन्द कर जख्म खाता रहा,

जमाना मुझे आजमाता रहा।।

 

शिकायत नहीं की किसी से कभी,

गलत फायदा सब उठाता रहा।

 

जरा-सा पलट के जो देखा मुझे,

सुकूँ चैन ये दिल गँवाता रहा।

 

मनाज़िर अनोखा छला रूप का,

खता प्यार की ये बताता रहा।

 

इजाजत अगर दे करुं ठीक सब,

हुआ सामना मुँह छुपाता रहा।

 

मनी ना दिवाली गरीबी तले,

फटेहाल दिल तैश खाता रहा।

 

कमी जिंदगी में हजारों रही,

उन्हें भूलकर मुस्कुराता रहा।

                                                                                #आलोक रंजन

परिचय: आलोक रंजन की शिक्षा स्नातक (प्रा.भा.इतिहास)है। आप लगभग सभी साहित्यिक विधा में लेखन करते हैं। प्रकाशित कृति आगाज़(साझा काव्य संग्रह) है तो, कुछ पत्रिकाओं में कविताएं,लघु निबंध प्रकाशितहैं। आप जिला बेगुसराय(बिहार)में रहते हैं।

 

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