नवरात्रि पर्व मतलब मातारानी की आराधना का पर्व,वैसे तो मातारानी के रूप अवतारों की यदि बात की जाए तो,मातारानी के इतने रूप है जिनका ज्ञान शायद बहुत ही कम लोगो को होगा!मातारानी की आराधना दशमहाविद्या के रूप में भी की जाती है, नवरात्रि पर्व में विशेष रूप से माता के नौ रूपो की पूजा की जाती है!
हमारे भारतवर्ष में नवरात्रि का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ बहुत ही धूम-धाम और विधि-विधान के साथ मनाया जाता है,विधि-विधान का तात्पर्य केवल इतना ही नही,कि हमने शास्त्रोक्त अध्ययन करके सारी विधि और नियम से शक्ति (माता) की आराधना कर ली,अपितु उसमे हमारी श्रद्धा और शुद्ध भावना का समावेश बहुत जरूरी है,मातारानी अपने भक्तों के हृदय की भावनाओ को देखती हैं, इसलिए हो सके तो पूरी श्रद्धा,निष्ठा और शास्त्रोक्त विधान से माँ की आराधना करनी चाहिए, यहां मैं ये बात भी स्पष्ट करना चाहूंगी कि ये बिल्कुल जरूरी नही है कि हर व्यक्ति शास्त्रोक्त विधि,,और सारे नियम से पूजा करने में सक्षम हो,कोई तो आर्थिक कमजोरी वश भी नही कर पाता,इसका ये मतलब नही कि,, उस भक्त की पूजा फलीभूत न हो,,वो भक्त किसी विधि-विधान के बगैर भी बस मातारानी की पूरी श्रद्धा और आत्मसमर्पण से आराधना कर सकता है!
देवी माँ का सर्वाधिक प्रसिद्ध रूप “दुर्गा माँ” का है, ऐसी मान्यता है ,कि विभिन्न कारणों से माँ दुर्गा ने विशेष रूप से अवतार लेकर नौ बार अपने भक्तों की रक्षा की थी,नवरात्रि में उन्ही नौ अवतारों की क्रमशः विशेष रूप से पूजा की जाती है:- १.शैलपुत्री २.ब्रम्हचारणी ३.चन्द्रघंटा ४.कुष्मांडा ५.स्कंदमाता ६.कात्यायनी ७.कालरात्रि ८.महागौरी ९.सिद्धिदात्री ये माता रानी के क्रमशः नौ रूप है!
यदि शस्त्रोक्त चर्चा की जाये तो यहाँ हम माता की आराधना के लिए बहुत सी बातों को ध्यान में रखते है,जैसे:-स्थान,दिशा,मुहूर्त, लग्न,दिन,नक्षत्र,तिथि और सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त,इस प्रकार से माता रानी की आराधना शुरू की जाती है, अपनी श्रद्धाभक्ति के अनुसार हम मातारानी की पूजा पंचोपचार विधि,षोडशोपचार विधि या सहस्रोपचार विधि द्वारा करते है! सामान्यतः हम किसी भी ईश्वर की आराधना यदि वृहद रूप से न भी कर पाए तो अपनी श्रद्धाभक्ति और सामर्थ्य अनुसार धूप,दीप,नैवेध आरती और आचमन के द्वारा (पंचोपचार) कर सकते है!
ऐसी मान्यता है कि मातारानी को लालरंग बेहद प्रिय है, तो हम मातारानी की आराधना विशेष तौर पर लाल रंग से जुड़ी चीज़ों से करते है, जैसे लाल सिंदूर, लाल चुनरी,लाल पुष्प आदि!
नवरात्रि का त्यौहार हमारे भारतवर्ष में वृहद और व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, हर स्थानों पर माता का वही नौ रूप होता है पर सभी अपने-अपने तरीके और श्रद्धा से ये पर्व मनाते हैं, बहुत से लोग इस पर्व में माता रानी के लिए उपवास रखकर भी आराधना करते है!
हमारे यहाँ नवरात्रि का पर्व साल में चार बार आता है, पहली चैत्र नवरात्र जिसे हम काली नवरात्रि भी कहते है, दूसरी शारदीय नवरात्र जिसे हम दुर्गा नवरात्र भी कहते है, और दो गुप्त नवरात्रि होती है, लेकिन शारदीय और चैत्र नवरात्र को बड़े वृहद रुप मे और धूमधाम के साथ मनाया जाता है, गुप्त नवरात्र के विषय मे ऐसी मान्यता है, कि इसमे साधक गुप्त रूप से माता की आराधना करके तपस्या करते है और सिद्धि प्राप्त करते है!
नवरात्रि पर्व में नौ दिन विशेष रूप से धूम रहती है, छोटी-छोटी कन्याओं को देवी का रूप मानकर उनका श्रृंगार कर उन्हें कन्याभोज कराया जाता हैं व उनकी पूजा कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है, पूरे नौ दिन कीर्तन-भजन और माता रानी की जय-जयकार से पूरा मन्दिर गूँजता रहता है, जगह-जगह पर पंडाल सजाकर मातारानी को स्थापित किया जाता है, और भंडारा भी कराया जाता है, लोग पूरी आस्था और भक्ति में डूबकर बड़े हर्षोल्लास से ये पर्व मनाते है!
नवरात्रि में लोग मातारानी की भक्ति में डूबकर गरबा और डांडिया भी खेलते है,गरबा पहले गुजरात और राजस्थान में ही खेला जाता था, लेकिन अब तो इसे पूरे भारतवर्ष में पूरे हर्षोल्लास से खेला जाता है,,
गरबा असल मे कई छिद्रों से युक्त एक घड़ा या कलश होता है जिसको माता के समक्ष रखकर उसके अंदर ९दिनों तक अखंड दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है,और साथ ही एक चांदी का सिक्का भी रखा जाता है, गरबा का शाब्दिक अर्थ गर्भ दीप होता है ,और जो इसके बीच यानी गर्भ में दीप प्रज्ज्वलित होता है न ,वो नारी 【माता】की सृजन शक्ति का प्रतीक होता है,इसी गरबे के चारो ओर ताल देते हुए माता का आह्वान किया जाता है,उन्हें प्रसन्न किया जाता है! और ये गरबे में गोल घूमना माता अम्बे की परिक्रमा को दर्शाता है,जिससे हम माता के और समीप होते है,और माता का हमे सानिध्य और आशीर्वाद प्राप्त होता है!!
एक बात गौर कीजियेगा कि गरबा खेलते समय तीन बार ताल ही क्यों मारा जाता है,क्योंकि ये तीन ताल ब्रम्हा,विष्णु और महेश का प्रतीक होता है, जिनके चारो ओर सारा ब्रम्हांड घूमता है,पहली ताली ब्रम्हा,दूसरी ताली विष्णु और तीसरी ताल भगवान शिव का प्रतीक होता है ,इन तीनो ताल के तेज से माँ जगदम्बा का आह्वान किया जाता है उनको प्रसन्न किया जाता है,और एक साइंटफिक कारण यह भी है, कि हमारे शरीर मे सकारात्मक उर्जा का संचार होता है,ताली बजाने से!!
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छत्तीसगढ़