लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में हजारों रंग के नजारे बन गए…

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एक कवि जिसने जिंदगी के हर रंग को गीतों में पिरोया… एक नहीं, दो नहीं… तीन तीन पीढ़ियां जिनके गीतों को गुनगुनाते हुए बड़ी हुईं…आज उस महान कवि गीतकार नीरज का जन्म दिन है…

एक ऐसा गीतकार जिसने प्यार का वह सदाबहार गीत रचा जिसका एक एक लफ्ज सुनने वाले के दिल में हलचल पैदा कर देता है…

शोखियों में घोला जाय फूलों का शबाब
उसमें फिर मिलाई जाय थोड़ी सी शराब
होगा वो नशा जो तैयार वो प्यार है प्यार…

उस शख्स ने जब विरह के भाव को नज्मों में पिरोया तो उस दर्द को भी जमाने ने उसी शिद्दत के साथ महसूस किया…

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लूट गये सिंगार सभी बाग के बबूल से
और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे…

जब बात जिंदगी और मौत की चली तो इस आखिरी सच्चाई को भी कितनी आसानी से समझा दिया…

कफ़न बढ़ा तो किस लिए नज़र तू डबडबा गई ?
सिंगार क्यों सहम गया बहार क्यों लजा गई ?
न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ बस इतनी सी बात है
किसी की आँख खुल गई किसी को नींद आ गई…

आज उनके गीतों को याद करने के साथ उनसे जुड़ी कुछ स्मृतियाँ जो धरोहर के रूप में मेरे पास हैं उन्हें आप सबों के साथ साझा करने का भी दिन है…1984 में जब मेरी तीसरी किताब ‘अनुभूति दंश’ साठ गजलों के संग्रह के रूप में प्रकाशित हो रही थी उसी दौरान मेरा उनसे संपर्क बना था …उन्होंने उस वक्त विज्ञान के उस छात्र को प्रोत्साहित किया जो हिंदी साहित्य में शब्दों को बाँधने की कला सीखने की कोशिश कर रहा था… उनके स्नेह और मार्गदर्शन ने मेरे भीतर के रचनाकार को विकसित होने में बड़ी भूमिका निभाई…

फिर एक अवसर था जब अक्टूबर 2015 में आईटीएम यूनिवर्सिटी, ग्वालियर में उनका आगमन हुआ… वहां उन्हें सुनने और उनका आशीर्वाद लेने के दौरान मेरे साथ जुड़ी यादों को फिर से ताजा करने का सौभाग्य बेटे सौरभ को प्राप्त हुआ…

बहरहाल आज उनके जन्मदिन पर इस कविता को गुनगुनाते हुए उस महान आत्मा को नमन करें…

छिप छिप अश्रु बहाने वालो! मोती व्यर्थ बहाने वालो!
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता…

#डा. स्वयंभू शलभ

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