श्रीकृष्ण चालीसा

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दोहा👇
गुरु चरणों में है नमन, वंदन श्री भगवान।
शारद माँ रखना कृपा, करूँ कृष्ण गुणगान।।
चौ.👇
कृष्ण अष्टमी भादौ मासे।
प्राकृत जीव वन्य मनु हासे।।
जन्मत मिटे मात पितु बंधन।
प्रकटे निशा देवकी नंदन ।।१

लिए छबरिया मे शिशु सिर धर।
चले निहंग बदन पद पथ पर।।
मेह रात्रि जल यमुना बाढ़ी।
पितु वसु नेह परीक्षा गाढ़ी।।२

जल जमुना हरि चरण पखारे।
शेषनाग ज्यों छतरी धारे।।
समझे कृष्ण मंद मुसकाते।
अनभल डरे पिता सकुचाते।।३

पहुँचे मीत नंद के द्वारे।
नंद कहे बड़भाग्य हमारे।।
पूछे कुशल परस्पर कहहिँ।
दे दी नंद सुता वसुदेवहिँ।।४

मथुरा लौट गए बंधन में।
गोकुल मग्न कृष्ण वंदन में।।
घर -घर गोकुल बजे बधाई।
नंद सुता ली कंस मँगाई ।।५

ग्वाल बाल परिजन नर नारी।
चाह निकटता कृष्णमुरारी।।
चारण भाट भिखारी जागे।
नंद द्वार पर सभी सुभागे।।६

मिष्ठ भोज रुचिकर सब खाते।
लिए भेंट हरि दर्शन पाते।।
आवत शिशु को आयषु देते।
चतुर सुजान माँग वर लेते।।७

मंद मंद कान्हा मुसकावे।
हरि माया सबको बौरावे।।
नंद यशोदा परिजन सारे।
लाड़ करे प्रिय कृष्ण दुलारे।।८

प्रतिदिन कृष्ण बढ़े जस पावे।
ग्वाल बाल नव खेल रचावे।।
देव अप्सरा नभ से देखे।
नंद यशोदा के भव लेखे।।९

परिजन पुरजन ग्वाले गोपी।
सब हरषाते कोउ न कोपी।।
पीत कछौट श्याम तन सोहे।
हरि हर रूप लोक मन मोहे।।१०

द्वापर युग जन भाग्य निराले।
हरि सन केलि करे जन ग्वाले।।
ग्वालिन गोपी हरि ललचावें।
माखन मिसरी खूब खिलावें।।११

घुटवन चलने लगे कन्हैया।
ताली दे दे नाचे मैया।।
गल वैजंती पीत कछोटी।
कटि पग घूँघर सिर पर चोटी।।१२

होते खड़े कभी गिर जाते।
कभी ठिनकते, कभी हँसाते।।
कभी पिता कर पकड़े छलिया।
कान्हा घूमें गोकुल गलिया।।१३

माँ यसुदा के संगत पनघट।
करते छेड़ हरषते नटखट।।
लाड़ करे गोपी पनिहारी।
शैतानी से डरती भारी।।१४

हरि फोड़े दधि माखन मटके।
छिपती फिरती गोपी भटके।।
कभी चिढ़ाते दाऊ भैया।
आकर आँचल छिपते मैया।।१५

मिट्टी खाते मुँह खुलवाया।
अखिल विश्व माँ दर्शन पाया।।
अहो भाग्य गोकुल नर नारी।
पीवत दूध पूतना मारी।।१६

अजब अनूठे खेल खिलाते।
कभी झगड़ते कभी मिलाते।।
ग्वाल वेष धर धेनु चराते।
दुष्ट दैत्य को मार भगाते।।१७

दधि माखन छछिया मन भावे।
छीने खावे और लुटावे ।।
अगर शिकायत माँ तक जाती।
कभी लडाती या धमकाती।।१८

भले बने शैतानी कर के।
झूठे रोते आँसू भर के।।
कान्ह हँसे जग मानो हँसता।
गोकुल मधुवन भावन बहता।।१९

हरि अनंत माया भरमाते।
नाचे, बंशी की धुन गाते।।
बाल सखा,राधा के संगत।
झूले ,खेले ,जीमन पंगत।।२०

कथा अनंत कृष्ण बचपन की।
मीत प्रीत अरु अपनेपन की।।
लिखते लिखते नहीं अघाते।
फिर भी सदा अधूरी पाते ।।२१

ज्यों ज्यों कान्हा बढ़ते जाते।
ग्वाल, गोपिका मन को भाते।।
धेनु चरावत माखन खावत।
दही दूध घी छाछ चुरावत।।२२

मधुवन ग्वालिन आती जाती।
कृष्ण, छेड़ती कभी लजाती।।
दही छाछ को लिए छिपाती।
लोभ छाछ के श्याम नचाती।।२३

कान्हा ग्वाले मिल कर घेरे।
मिले गोपिका साँझ सवेरे।।
कोई हरषे मन मतवारी।
कोपी कुटिला देती गारी।।२४

संदीपन के आश्रम जाते।
बाल सखा सब शिक्षा पाते।।
मित्र सुदामा वहीं बने थे।
जिसने खाए कपट चने थे।।२५

नाग कालिए के फन नाचत।
काली दह से अपडर भागत।।
मामा कंस को मार गिराया।
उग्रसेन तब शासन पाया।।२६

जरासंध अरु दुष्ट अनेका।
किए प्रबंधन उचित विवेका।।
नारी के अधिकार हितैषी।
कर्म प्रधान सोच सम्पोषी।।२७

बहुविधि हरि लीला दिखलाते।
योग वियोग सभी क्षण आते।।
बन रणछोड़ हानि जन टाले।
पीर पराई कृष्ण सँभाले ।।२८

रुक्मिनि हरण सुमंगल करनी।
राधा – कान्हा ज्यों नद तरनी।।
प्रेम सनेही गोपि वियोगी।
ऊधो मधुप पठाए जोगी।।२९

बहुविधि भ्रमर सखिन समझाए।
निर्गुण मत हरि मिलन बताए।।
हारा मधुप पंथ निर्गुण का।
जीता प्रेम सगुण सखियन का।।३०

प्रेम भक्ति हरि की अतिपावनि।
अविचल अविरल है मनभावनि।।
भक्ति सुफल तुलसी वर पाया।
श्यामा दल चरणामृत आया।।३१

कुंती बुआ सदा सम्माने।
हर पल पार्थ संग जग जाने।।
द्रुपद सुता अरु पाँचो पाण्डव।
इन्द्र प्रस्थ बसता वन खाण्डव।।३२

पाण्डव राजसूय यग करते।
पूजन अग्र आपको रखते।।
सुनि शिशुपाल कही,सौ गाली।
शीश काट मर्यादा पाली।।३३

द्यूतक सभा द्रौपदी हारी।
लाज रखी, साड़ी विस्तारी।।
लाक्षागृह, षड़यंत्र बचाया।
रहे पाण्डवों के बन साया।।३४

किए प्रयास युद्ध टल जाए।
पाँच गाँव पाण्डव बस पाए।।
हठी सुयोधन आँख बताए।
रूप विराट सभा दिखलाए।।३५

तजे सुयोधन की महिमानी।
साग विदुर घर जीमे मानी।।
प्रीति सु रीति निभाने वाला।
यसुमति नंदन , हे ..गोपाला।।३६

सैन्यहीन हो पाण्डव जत्थे।
बने पार्थ के सार्थ निहत्थे।।
पाण्डव सेना के बन पायक।
दुष्टों को लगते खलनायक।।३७

कुरुक्षेत्र में गीता गाई।
भरतभूमि जन मन सुखदाई।।
भार मुक्त वसुधा मनचीते।
नाशे दुष्ट धर्म ध्वज जीते।।३८

मीत सुदामा प्रीत मिताई।
हरि जन संगत खूब निभाई।।
यदुकुल निजतन विधि अनुसारा।
रीत सु प्रीत निभावनहारा ।।३९

गोधन पशुधन मानुष तरुवर।
मान किया प्राकृत नद गिरिवर।।
शान कदम पीपल तरु श्यामा।
प्राकृत हित करिऐ सद कामा।।४०

दोहा👇
कृष्ण राधिका की कृपा,लिखे भाव मतिमंद।
शर्मा बाबू लाल के, हरो नाथ मन द्वंद।।

नाम–बाबू लाल शर्मा 
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।