दायित्वों से अनभिज्ञः युवा वर्ग

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aashutosh kumar

ठाकुर बलदेव सिंह एक नाम ही नही वे सचमूच के ठाकुर हैं मेरा मतलब कर्म से है। दरअसल उनकी जमींदारी का रूतवा आज के दौर में भी बरकरार था।नौकर चाकर बंगला सरकार पर पहुँच क्या नही था उनके पास।बीते 4दशकों से उन्होने समय को अपने हिसाब से चलाया। कईयो को बनाया, मदद की कई लोगो की शादी, श्राद्ध आदि कार्यों में वे लगातार सहायता करते रहे है। उनके व्यक्तित्व की चमक आज भी बरकरार है। आज बीस साल बाद मुझे ठाकुर साहब के घर जाने और हालचाल जानने का अवसर मिला।क्योंकि मै बहुत दिनो पर घर आया था पहले जब कभी आता तो ठाकुर साहब बाहर होते या मै जल्दी में होता।लेकिन इस बार मन बना चुका था कि जरूर मिलूँगा आखिरकार उनके हवेली पर मै गया।उनको देखकर बहुत बडा झटका लगा । बुढापा उन पर हावी था।वे चल फिर नही पा रहे थे।आवाज घीमी पर रही थी।लेकिन सबसे ज्यादा अफसोस तब हुआ जब कोई अपना उनके आस पास नही था। उनके इर्द गिर्द वे लोग ही थे जिन पर उन्होने एहसान किए थे या जिनको उन्होने कार्य पर रखा था।देखकर जानकर मुझे गहरा धक्का लगा मै ठाकुर जी को बडी करीब से जानता था उनके मृदुस्वभाव से मै अच्छी तरह परिचित था।
दर असल ठाकुर साहब के चार संतान थे तीन लडका और एक लडकी सभी अच्छे पढे लिखे और अपनी अपनी पत्नी या पति के साथ अपनी अपनी दुनिया में मग्न थे।कभी कभार आते नौकरो को फरमाकर चले जाते।ठाकुर साहब की पत्नी जो एक धर्म कर्म करनेवाली महिला थी पाँच वर्ष पूर्व स्वर्ग सिधार चुकी थी।
अकेलापन और पारिवारिक झंझटो ने उन्हें अंन्दर से तोड दिया था।वे आज भी इस हालत में लोगो के मदद को तैयार रहते हैं पर शारीरिक असमर्थता और बढते उम्र ने लाचार कर दिया था।मुझ पर नजर पडते ही मुझे पहचान गए बीते दिनो की बातें वो करना चाह रहे थे। लेकिन आवाज नही निकल पा रही थी । मै उनकी इस पीडा को देख कर रोने लगा।इतना धर्म कर्म करने वाले व्यक्ति का यह हाल भला कैसे हो सकता है? वो इन्सान जिसने दूसरो के लिए तमाम उम्र लगा दी आज अपनो से दूर क्यों है?क्या बुजुर्ग की उपेक्षा आज कल का फैशन हो गया है? क्या मानवता दम तोडने लगी है? न जाने कितने सवाल मेरे दिमाग में चल रहे थे।जिसका जबाब मिल पाना मुश्किल है।
दरअसल आज कल का फैशन विलासिता उपकरण और तेज रफ्तार जिन्दगी में सभी लोग अपने घर के बुजुर्गो को भूलने लगे हैं।वे चंद रूपये चंद नौकर तो लगा देते फोन पर सूचना ले लेते लेकिन वक्त नही दे पाते जो निहायत ओछापन और उपेक्षा है। ये वो अवस्था है जहाँ माँ बाप या बुजुर्गो को समीप्य की जरूरत होती है ताउम्र जो माँ बाप कठिन से कठिन परिस्थितियों को झेलकर बच्चो की हर खुशी के लिए लगा देते है और जब उनकी सेवा और मीठे वचन की बारी आती है तो उन्हें चंद रूपये नौकर देकर उन्हे अकेलापन झेलने को विवश कर दिया जाता है।धीरे धीरे वो अंदर ही अंदर टूटते जाते हैं चिंतित रहने लगते और एक दिन उनकी हालत ठाकुर वलदेव सिंह जैसी हो जाती है।मै सोचते हुए यहभी महसूस किया कि आज के युवा पीढी सिर्फ अपनी सुख सुविधाओं को प्राप्त करना ही अपना फर्ज महसूस करने लगे है बोलने की शालीनता, लोकलाज और चरित्रिक गिरावट चरम पर है।सिर्फ चंद किताबी ज्ञान तो वे प्राप्त कर लेते है लेकिन सामाजिक, व्यवहारिक, सांस्कृतिक ज्ञान और परिवेश से अनभिज्ञ रहते हैं।जैसे बडो का आदर करना,उनके आर्दश को निभाना,विरासत की रक्षा करना,पर्व त्योहार,और सामाजिक कार्यो में रूचि रखना इन सब चीजों का ज्ञान उन्हें हास्टल या वोर्डिंग स्कूल में नहीं मिल पाता।इन सब ज्ञानो को प्राप्त करने के लिए आपको ग्रामीण परिवेश,सामाजिक परिवेश और सांस्कृतिक परिवेश की जरूरत होती है जिसे बडो के साथ रहकर ही प्राप्त किया जा सकता है ताकि बोलने के तरीके मर्यादा और सम्मान की भावना जागृत हो सके।
कालान्तर में भी गुरूकुल हुआ करती थी जिसमें इस तरह की शिक्षा दी जाती थी जिसका वर्णन रामायण और महाभारत में मिलता है।बाल्मिकी आश्रम में दशरथ के पुत्रों और महाभारत में आआर्य द्रोण के आश्रम में पाण्डव तथा कौरवो ने शिक्षा ग्रहण की थी। मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम और वीर अर्जुन की कहानी आज भी सभी के लिए प्रेरणादायी बनी हुई है।कहने का तात्पर्य यह है कि शिक्षा का स्तर सिर्फ स्लेबस को पूरा करने से नही हो जाता शिक्षित तभी माना जा सकता जब वह सभी क्षेत्रो में अपनी जिम्मेदारियो को निभा सके और सभी परिवेश में अपने आप को ढाल सके । समाज और परिवार के सभी सदस्यो को खुश रख सके ऐसे व्यक्ति ही सही मायने में शिक्षत है वरना ठाकुर वलदेव सिंह का बच्चा।।

“आशुतोष”

नाम।                   –  आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम –  आशुतोष
जन्मतिथि             –  30/101973
वर्तमान पता          – 113/77बी  
                              शास्त्रीनगर 
                              पटना  23 बिहार                  
कार्यक्षेत्र               –  जाॅब
शिक्षा                   –  ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन                 – नगण्य
सम्मान।                – नगण्य
अन्य उलब्धि          – कभ्प्यूटर आपरेटर
                                टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य   – सामाजिक जागृति

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।