ज़रा सम्हाल के……

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saket jain

हम सबमें जज़्बात होते हैं………

हम सबके जज़्बात होते हैं……..

………. होने भी चाहिए क्योंकि यदि जज़्बात न हों तो फिर मानव और मशीन में फर्क ही नहीं रह जायेगा इसलिए जज़्बातों का होना तो बनता है, स्वाभाविक भी है ।

हां पर हमें जज़्बातों में ज़्यादा बहना नहीं चाहिए क्योंकि कहा है न, कि यदि हम जज़्बातों में बह जाएंगे तो वे जज़्बात हमारे लिए स्टेटस बनकर रह जाएंगे और दूसरों के लिए एन्टरटेनमेन्ट ।

अतः मेरा तो यही मानना है कि जज़्बात मतलब कि हमारा दिल व उसकी भावनाएं और जज़्बातों पर काबू रखने वाले अपने दिमाग इन दोनों का बहुत संतुलन होना चाहिए ।

आजकल यदि लोगों के जज़्बातों को देखें तो वे और भी स्वार्थपूर्ण हो गये हैं, यही कारण है कि वे अपने जज़्बातों की कद्र तो चाहते है पर इसके चक्कर में वे कभी-कभी उनके जज़्बातों की भी कद्र नहीं कर पाते जो उन्हें इस दुनिया में लाए, जिन्होंने उन्हें दुनिया में हर कदम पर सम्हाला ।

और इसलिए गहराई से विचार करें कि यह स्वार्थपरता उनके पतन का ही कारण बनती है, उत्थान का नहीं ।

लेकिन यदि हम अपने साथ-साथ अन्यों के जज़्बातों की भी कद्र करने लग जायें तो यकीन मानिये ये समाज अपने आप ही तरक्की की नई ऊँचाईयों को छू लेगा ।

इस प्रसंग में हम और आप कहां खड़े है यह विचार करना आवश्यक है ? हम और आप समाज की इस तरक्की में अपना भरपूर योगदान दें यही मंगल भावना है ।

साकेत जैन शास्त्री ‘सहज’
जयपुर(राजस्थान)

matruadmin

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