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आज प्रेम कैसा सीमित है।
हर मानव इससे भ्रमित है।
प्यार स्वार्थ का पर्याय बना है।
कामेच्छा जीवन लक्ष्य बना है।
स्वतन्त्र मानव होकर के भी
गुलाम विकारों का बना है।
चारित्रिक दृष्टि से तब ही ,
आज मनुष्य पतित बना है।
वक्त रफ्तार से गुजर रहा है।
मनुष्य धोखा खा रहा है।
अनियन्त्रित मन और कर्मेन्द्रियों से,
मानव मर्यादा भूल रहा है
मानव मर्यादा भूल रहा है।
#विनय अन्थवालरुद्रप्रयाग(उत्तराखण्ड )
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