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भारत ,जहाँ कहा जाता है “कोस-कोस पर पानी , तीन कोस पर बानी ” इस परिदृश्य में देश के विभिन्न भाषा -भाषाई जन को एक सूत्र में पिरोने वाली हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी की गरिमा ,मान -सम्मान, विश्वव्यापी पहचान और स्थान, पाठ्यक्रमों में हिंदी , राजकीय कार्य की भाषा हिंदी ,न्यायालयों में हिंदी , विदेश विभाग में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग , हिंदी संस्थानों के प्रमुख पदों पर हिंदी विद्वानों की नियुक्ति , विदेशों में हिंदी को बढ़ावा, तकनीक में हिंदी, प्रतियोगिता परीक्षाओं में हिंदी,हिंदी की अद्यतन दशा और दिशा,सकारात्मक सोच और समीक्षा,हमारी सूक्ष्म और सटीक दृष्टि,अतीत के आईने में हिंदी की वर्तमान वस्तुस्तिथि पर चिंतन,विमर्श बहुत ज़रूरी है
पाली से प्राकृत, प्राकृत से अपभ्रंश और रामचरित मानस , महाभारत , अमीर खुसरों की खड़ी बोली और हिंदी को उत्कृष्ट शीर्ष तक पहुँचाने वाले अनगिनत सरस्वती वरद पुत्रों का अमूल्य , अविस्मरणीय योगदान चिर काल तक हमारी धरोहर है, और वर्तमान के लिए सशक्त ,तेजोमय प्रकाश स्तम्भ। आज हिंदी को उसकी अस्मिता , स्थान , पहचान, और गरिमा के पुनः स्थापना की महती आवश्यकता है, ये तो परिलक्षित हो गया है। सूचना प्रोद्दोगिकी , संचार माध्यमों, वैश्वीकरण इन सभी के साथ गतिशीलता बनाये रखने की अपरिहार्य आवश्यकता इसका मुख्य कारण है। भव्य आयोजन पर करोङो खर्च करना भी कई सवाल खड़े करता है। वस्तुतः हिंदी का विस्तार और संभावनाएं कहाँ तक हैं। आज इस तकनीकी दौर में जहाँ सर्वत्र अंग्रेजी का बोलबाला है हिंदी , ‘हिंगलिश’ हुई जा रही है ,वहां भाषा को स्थायित्व प्रदान करने हेतु राजनीतिक संरक्षण दिया जाना शुभ संकेत हो सकेगा ,अगर परिणामोन्मुख, लक्ष्यभेदी ,दूरंदेशी , ईमानदार सोच के पंखों से उड़ान भरी जाये और सम्मेलनों ,सेमिनारों ,सभाओं को हक़ीक़तों की डोर से बांधा जाए ।
शिक्षा सर्वांगीण विकास का माध्यम है। गुरुओं और विद्यार्थी के मध्य समर्पण और ज्ञान का सेतु है। विद्यार्थियों ,अध्यापकों तक ये सम्मेलन कितना पहुंचा , यक्ष प्रश्न है! विद्यालयों में पढ़ रहे बच्चे भविष्य के कर्ण धार हैं। उन तक हिंदी भाषा कितनी पहुँच रही किस माध्यम से ,किसके द्वारा , किस स्वरुप में पहुँच रही है !बच्चों पर भाषा की डोर को थाम कर उसे ऊंचाइयां प्रदान करते हुए भारतीय संस्कृति , सभ्यता को विश्व पटल पर स्वर्णाक्षरों में अंकित करने का दायित्व है।उनका हिन्दी के पठन-पाठन,लेखन में कितना रुझान है! अभी आये नतीजों से साफ़ पता चल रहा है की स्कूल में हिंदी का रिजल्ट कितना ख़राब है। निजी स्कूलों के साथ साथ सी. बी. एस. सी स्कूलों में भी बहुत खराब रहता है हिंदी का रिजल्ट। अपने ही देश में स्कूल मैनेजमेंट , शिक्षकों , छात्रों , अविभावकों के मध्य हिंदी पठन -पाठन , लेखन , हिंदी में अभिरुचि बहुत काम दिखाई दे रही हैं, जिसका जीत -जागता परिणाम है ये दुर्भाग्यपूर्ण नतीजे। जो रुचि रखते है उन तक हिन्दी कितनी शुद्ध ,परिष्कृत रूप में आ रही है ,वह शुद्ध हिन्दी लेखन , उच्चारण का कितना प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं !इस वस्तुस्तिथि और विषय की गंभीरता का संज्ञान उनके मध्य जाकर ही हो सकता है। आवश्यक है, ऐसे आयोजनों का निष्कर्ष सकारात्मक निकले ,वास्तविकता की धरातल पर टिके, केवल भारी वक्तव्यों, प्रदर्शनों, तैयारियों , दिखावों तक सीमित होकर पटाछेप न हो जाये ।”कोटि -कोटि कंठों की भाषा ,जन जन की मुखरित अभिलाषा ” डॉ.लक्ष्मीमल सिंघवी की पंक्तियाँ सार्थक बने ,जब हिंदी अपनी क्लिष्टता त्यागकर सरल, सुगम, ग्राह, सशक्त होकर जन -जीवन में रचे -बसे । जब हिंदी सरकारी कामकाज ,न्यायालयों में , विज्ञानं ,तकनीक, ,प्रोद्दोगिकी , संचार, वाणिज्य , सामान्य व्यवहार, जन संपर्क की भाषा बने। सबसे बड़ी आवश्यकता जब हिंदी ‘रोजगार मूलक’ बने, हिंदी द्वारा रोजगार प्राप्त हों ,तभी इसे समग्रता से जीवन में अपनाया जायेगा। अभी हिंदी की विश्वव्यापी मान्यता और रोजगार अवसरों में न्यूनता, इसे कहीं न कहीं अनुगामी और मुख्य धारा से विमुख कर रही है ।
“ निज भाषा उन्नत्ति अहे ,सब उन्नत्ति को मूल ,बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को शूल ” ‘ भारतेंदु हरिश्चंद्र ‘ की ये पंक्तियाँ सत्य आलेख हैं भारतीयता का । वेद भाषा संस्कृत से जन्मित , उदारमना हिंदी व्यापकता के साथ अन्य भाषाओँ के छीटों को समाहित करते हुए समृद्ध ,स्वस्फ़ूर्त प्रवाहित हो ,भारत की एकजुटता को सम्बल प्रदान करते हुए हमारी संस्कृति की संवाहक बने और विश्व भाल पर चन्दन सी महके ,एक राष्ट्रभक्त, हिंदी प्रेमी की कामना यही है।
#अनुपमा श्रीवास्तव”अनुश्री”
परिचय-
साहित्यकार , कवयित्री, एंकर, समाजसेवी।
अध्यक्ष – आरंभ फाउंडेशन एवं विश्व हिंदी संस्थान ,कनाडा , चेप्टर मध्यप्रदेश
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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