रह जाता कोई अर्थ नहीं

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niraj tyagi
दिन – रात  है  वो  साथ  मेरे,
ना   पूछे  मुझसे  बात  कोई,
मोह  जब  उससे  खत्म हुआ,
तब   पूछे   मुझसे  हाल मेरा,
तब रह जाता कोई अर्थ नही।
जीवन के संघर्षों में ना किया
कोई प्रयत्न उनसे लड़ने का,
यूँ  ही  थककर  तू  बैठ गया,
लूटने पर जब करता प्रयत्न
तब रह जाता कोई अर्थ नही।
घर मे जब रोते माँ बाप तेरे,
जीवन में ना पाए  प्यार तेरा
मरने पर  तस्वीर  पर उनकी
रोज चढ़ाए  फूलो की  माला
तब रह जाता कोई अर्थ नही।
अपने मन की उथलपुथल को
रोज पन्नो पर ही लिखते जाना
लिखे  हुए अपने ही शब्दो को
मैंने अपने जीवन मे ना उतारा,
तब रह जाता कोई अर्थ नही।
#नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

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