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तन्हा उड़ रहा था वो गगन में
कोई साथी न कोई हम-परवाज़
फिर भी मस्त था
अपनी धुन में उड़ा जा रहा था
तभी दूर फ़ज़ा में
झुंड इक आवारा सा
देखा उसने
जी चाहा उसका
सँग झुंड के घूम ले वो भी
आकाश सारा
फिर अचानक सोच में डूब गया
“क्या घुलमिल पाऊँगा मैं
उस झुंड के सदस्यों से
क्या मैं भी उनके जैसा हूँ
या कुछ न्यूनता है मुझमें
उनसे मेल नहीं खाया तो
उपहास का पात्र न बन जाऊँ”
सवालों की उधेड़बुन के साथ
उड़ता जा रहा था वो
अपनी धुन में
रास्ता कठिन था
पँख भी थके-थके से थे
मगर वो रुका नहीं
विपरीत हवाओं से घबराकर
झुका नहीं
अकेला था, अकेला ही चलता रहा
अपनी मन्ज़िल की ओर
तभी इक फ़रिश्ता सा
सफ़र में मिला उसको
पँखो को दि क़ुव्वत-ए-परवाज़ जिसने
वो उड़ता रहा, बस उड़ता रहा
अपनी धुन में
फिर, रास्ता और मन्ज़िल
सामने दिखने लगे उसको
आवारा झुन्ड
फिर से टकरा गया उस से
अब तो
सफ़र तमाम होने को था उसका
प्रशंसा हर त़रफ़ हो रही थी उसकी
कितना है जाँबाज़
अपनी मस्ती में तन्हा ही
कैसे मन्ज़िल पा ली उसने
क़द्र-दानी देखकर अपनी
उसने नम्रता से कहा
मन्ज़िल की लौ लेकर
इक फ़रिश्ता आया था
बस, उस लौ की त़रफ़
खींचा चला आया।
#अनु अत्री
क़ुव्वत-ए-परवाज़: उड़ान भरने का बल
परिचय-
नाम : अनुराधा
क़लमी नाम : अनु अत्री
जन्म: अगस्त 1986, ऊधमपुर (जम्मू कश्मीर)
साहित्यिक जगत में अभी ज़ियादा पहचान नहीं बना पाई हूँ। ज़ियादा समय अपने बच्चों और घर परिवार को संभालती हूँ और जब कभी वक़्त मिले तो कुछ न कुछ लिखने लगती हूँ।
सोचा न था कि ज़िन्दगी में कभी लेखिका बनूँगी क्योंकि मुझे कभी यह एह़सास ही नहीं हुआ कि मैं लिख सकती हूँ अलबत्ता साहित्य पढ़ने का शौक़ गोया स्कूल के ज़माने से ही था। अख़बार में छपी कहानियाँ अक्सर पढ़ा करती थी। बा’द में मैगज़ीन आदि में छपी कविताएँ और कहानियाँ भी पढ़ने लगी।
समय के चलते मुझे लिखने की ख़्वाहिश होने लगी । और धीरे धीरे मैंने भी लिखना शुरू कर दिया ।
मेरी पहली कहानी ‘अधूरी ख़्वाहिशें’ और पहली कविता ‘सोचती हूँ कभी कभी’ 2015 में लिखीं।
मुझे हमेशा अपने जैसे लिखने वालों की तलाश रहती थी जो लिखना चाहते थे मगर सामने नहीं आते थे।
आज जिस मक़ाम पर हूँ अपने परिवार के सहयोग और अपने मित्रों की बदौलत हूँ।
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Mon Apr 22 , 2019
आप कहते रहिए मैं सुनता रहूंगा आप उधेड़ते रहिए मैं बुनता रहूंगा आप तंज़ किजिए मैं दिल पर नहीं लूंगा आप बुरा भला कहिए मैं मुस्कुरा दूंगा आप दावा कीजिए बेहतरीन लिखने का मैं बड़े अदब से उसे पढ़ूँगा आप बहस का मौक़ा तलाश किजिए मैं कभी आपसे नहीं उलझूँगा […]