नवरात्रि

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archana dube

दीप जला अर्चन करू, मन में पूजा भाव ।
नव दिन का नवरात्रि है, मइया देती छाव ॥1॥
माता के दरबार में, भक्तों का भरमार ।
पूजन वंदन कर रहे, माँ का बारम्बार ॥2॥
थाल सजा पूजन किया, नव दुर्गा का आज ।
भक्त सभी दर्शन किये, पूर्ण हुआ सब काज ॥3॥
अढ़हूल कुसुम से बना, माता जी का हार ।
पूड़ी – खीर भोग लगा, माँ करती उध्दार ॥4॥
स्नेह नयन में दिख रहा, कर लो जय जयकार ।
नव दिन सब सेवा करो, नइया होगा पार ॥5॥
महाकालि अब आ गयी, दुष्टों का संहार ।
भक्त सभी खुशहाल है, अब नहि करो प्रहार ॥6॥
माता की महिमा बड़ी, दुख में देती साथ ।
नव दिन जो पूजे सदा, सिर पर उनका हाथ ॥7॥
माता के नव रूप को, बारम्बार प्रणाम ।
सदा करूंगी अर्चना, माता जी के धाम ॥8॥
घर – घर मंदिर सज रहे, आया शुभ नवरात ।
जगदम्बा के स्वरुप को, पूजे सब दिन रात ॥9॥
गीत – भजन गाते सभी, मइया का जयकार ।
भक्त सभी दर्शन करें, माँ का बारम्बार ॥10॥
जय अम्बे माँ शारदा, हर स्वरूप में आप ।
हाथ जोड़ विनती करूं, माला लेकर जाप ॥11॥
जय – जय माता शीतला, सदा धरे जो ध्यान ।
सुख संपत्ति सदा रहे, पाये बुधि, बल,ज्ञान ॥12॥
हाथ जोड़ती हूँ सदा, जगदम्बा दरबार ।
लाल चुनरियाँ ओढ़के, चौकी मात सवार ॥13॥
माँ दुर्गा नव रूप में, आती हर नवरात ।
अपने भक्त को मइया, देती है सौगात ॥14॥
तृतीय रुप चंद्रघंटा, माँ दुर्गा का आज ।
पूजन – अर्चन कर लिया, पूर्ण हुआ सब काज ॥15॥
देवी के दस हाथ है, सुंदर परम है रुप ।
अंग – अंग सूवर्ण सा, पूजूँ लेकर धूप ॥16॥
मइया की आराधना,‘रीत’ करें दिन – रात ।
हे माइ मोहि दरश दो, करना है कुछ बात ॥17॥
पूजा की थाली सजा, मांग भरी सिंदूर ।
सदा सुहागिन मैं रहूँ, आशिष दो भरपूर ॥18॥
भोर भजन है हो रहा, माता के दरबार ।
शाम आरती सब करें, अम्बे जय जयकार ॥19॥
नव रुपों में जगदम्बा, होकर शेर सवार ।
हाथों में कटार लिए, आयी ‘रीत’दुवार ॥20॥
विनती बारम्बार है, मत होना नाराज ।
सुधि मइयालेती रहो, जब दूँ मैं आवाज ॥21॥
मंदिर होती आरती,घर – घर बटे प्रसाद ।
नव दिन का नवरात है, माँ हरती अवसाद ॥22॥
चंद्रघंटा मात सदा, करती जग कल्याण ।
विनती यहि कर जोड़ है, मात बचाओ प्राण ॥23॥
माता की पूजा करों,ले हाथों में थाल ।
रखें कुशल माँ शीतला, भक्त रहे खुशहाल ॥24॥
देवी का नव रूप है, नाम कितने हजार ।
जब – जब आयी है धरा, की पापी संहार ॥25॥

परिचय-

नाम  -डॉ. अर्चना दुबे

मुम्बई(महाराष्ट्र)

जन्म स्थान  –   जिला- जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

शिक्षा –  एम.ए., पीएच-डी.

कार्यक्षेत्र  –  स्वच्छंद  लेखनकार्य

लेखन विधा  –  गीत, गज़ल, लेख, कहाँनी, लघुकथा, कविता, समीक्षा आदि विधा पर ।

कोई प्रकाशन  संग्रह / किताब  –  दो साझा काव्य संग्रह ।

रचना प्रकाशन  –  मेट्रो दिनांक हिंदी साप्ताहिक अखबार (मुम्बई ) से  मार्च 2018 से ( सह सम्पादक ) का कार्य ।

  • काव्य स्पंदन पत्रिका साप्ताहिक (दिल्ली) प्रति सप्ताह कविता, गज़ल प्रकाशित ।

  • कई हिंदी अखबार और पत्रिकाओं में लेख, कहाँनी, कविता, गज़ल, लघुकथा, समीक्षा प्रकाशित ।

  • दर्जनों से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रपत्र वाचन ।

  • अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका में 4 लेख प्रकाशित ।

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।