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मैं धरती का दीप बनूंगा,
दूर करूँगा अँधियारा।
साक्षरता रूपी लहर चलाकर,
शिक्षित करूँगा जग सारा।
मैं धरती का पुष्प बनूंगा,
पावन सुगंध फैलाऊगा।
काँटे सारे स्वयं लेकर मैं,
कोमल छाँव बिछाऊँगा।
मैं धरती का खग बनूँगा,
सदभावना फैलाऊँगा।
समृद्धि गरिमा प्रतीक बनकर,
झंडा ऊँचा उठाऊँगा।
मैं धरती का कृषक बनूँगा,
पैदावार बढ़ाऊँगा।
आगे बढ़कर उन्नति में,
कदम से कदम मिलाऊँगा।
मैं धरती का रक्षक बनकर,
हिमालय कहलाऊँगा।
ऊँची-ऊँची श्रृंग फैलाकर ,
देश का गौरव बढ़ाऊँगा।
भारतीय कहलाऊंगा।
#नाम-प्रीति गौड़
पता- जयपुर(राजस्थान)
शिक्षा- एम टेक ( कंप्यूटर साइंस)
ए ऍम आई ई टी ई- ( टेलिकॉम्युनिकेशन इंजीनियरिंग)
पॉलिटेक्निक डिप्लोमा- (इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन)
डीसीए, डोएक ऐ लेवल कोर्स
रूचि- कविताएं लिखना, पुस्तकें पढ़ना
उपलब्धता-कविता वाचन में द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार
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Mon Apr 8 , 2019
हर रोज़ ही कोई नई खता चाहिए इस दिल को दर्द का पता चाहिए कब तक होगा झूठा खैर मकदम मुझे अब बेरुख़ी का अता* चाहिए अच्छे लगते ही नहीं सूनी मंज़िलें काँटों से ही भरा रास्ता चाहिए मेरा इश्क़ सबसे निभ नहीं पाएगा सो हमनबा भी कोई सस्ता […]