वो सुहाने दिन माँगे

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mahendr

धूल भरी गलियाँ वो सुहाने दिन माँगे,
जिंदगी मुझसे फिर वही बचपन माँगें।।

ज्येठ की दोपहर तपती जमीं पकते खजूर,
अधपकी अमिया काले काले  जामुन माँगे।

बरसाती पानी में निहारी थी कभी अपनी छवि,
जिंदगी मझसे फिर वही पानी के दर्पण माँगे।

महुआ की चौखट वो मेरे गाँव की बाखर,
जिंदगी मुझसे फिर वही पथरीले आँगन माँगे।

आम-इमली के विरछा वो घनी पीपल छाया,
जिंदगी मुझसे फिर वही आकर्षण माँगे।

बरगद से बँधे झूले और वो राखी के धागे,
जिंदगी मुझसे आज फिर वही सावन माँगे।

#एड.महेन्द्र श्रीवास्तव

परिचय : एडवोकेट महेन्द्र श्रीवास्तव दमोह (म.प्र.)में रहते हैं। आपको लेखन के लिए महेश जोशी स्मृति सम्मान सहित साहित्य मेला इलाहाबाद में भी सम्मानित किया गया है। चित्रगुप्त न्यास दमोह द्वारा भी सम्मानित हैं।

matruadmin

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