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जब हम अपने,
लक्ष्य से,
भटक जाते हैं।
हमारी जिंदगी,
बारूद के ढे़र की तरह,
हो जाती है।
हर पल डर में ही,
बीतने लगती है जिंदगी।
न जाने कब,
यह सुलग जाएं,
और हम,
ढे़र हो जाएं।
#सरदानन्द राजली
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