अधुनातन नारी

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कोई भी प्रण कोई प्रतिज्ञा
इस युग में मैं नहीं करुँगी
अखिल विश्व का भार वहन कर
वसुंधरा मैं नहीं बनूँगी…
ऋषि पत्नी का शापित जीवन
शिला बनी जो भटकी वन वन
राम चरण रज प्रतीक्षारत
अहिल्या बनकर नहीं रहूँगी
कोई भी प्रण….
पांच पांडवों की भार्या बन
पांचाली सा कुंठित जीवन
भरी सभा में लज्जित होकर
अपनी पीड़ा नहीं कहूँगी
कोई भी प्रण….
आजन्म पतिव्रत कर धारित
कर न सकी सतीत्व प्रमाणित
धरती माँ की गोद समाकर
अब मैं सीता नहीं बनूँगी
कोई भी प्रण….
निज कर्त्तव्य का कर पालन
लखन गए भाई संग वन
प्रेषितपतिका सा उपेक्षित जीवन
उर्मिला होकर नहीं सहूँगी
कोई भी प्रण…
पाया उसने जो पति जन्मांध
आँखों पे सदा ली पट्टी बांध
पतिव्रता गांधारी बनकर
कोई प्रतिज्ञा मैं नहीं लूँगी
कोई भी प्रण….
लोक लाज तज बन गई जोगन
 मीरा के तो गिरधर मोहन
कुल की मर्यादा रखने को
मैं विष का प्याला नहीं पिऊँगी
कोई भी प्रण…
बिना कहे जब गए नाथ
रख भी न सके सुत शीश हाथ
रात्रि में त्याग दिया जिसको
वो यशोधरा बन नहीं जिऊंगी
कोई भी प्रण..
मैं तो हूँ नारी अधुनातन
खुद ही जीऊँगी अपना जीवन
अपने हिस्से का कोई क्षण
किसी और को मैं नहीं दूँगी
कोई भी प्रण….
#रश्मि शर्मा
 उदयपुर(राजस्थान)
 

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