
साहित्यकार ज्योति जैन की ‘जीवन दृष्टी ‘ साहित्य की एक ऐसी खत्म होने की कगार पर खड़ी ललित निबंध विधा को नई ऊर्जा प्रदान करती है | विभिन्न विषयों चिंतन,विचार और रचनाशील भावों को जमीनी स्तर पर तलाश कर उनमे गहराई से दृष्टि डालकर ‘जीवन दृष्टी ‘ अंक संजोया है | सेवा ही धर्म है में -पथिक प्याऊ के करीब पहुँचा | इधर -उधर देखकर उसने सेठजी से कहा-‘पानी पीला दीजिए ” सेठजी क जवाब था अभी आदमी आता है |पथिक रुक गया | कुछ देर तक प्यास से आकुलता रहा फिर बोला “पानी पीला दीजिए “| पुनः सेठजी ने कहा ने कहा -अभी आदमी आता है “| प्यासा पथिक बोला -“सेठजी| कुछ देर के लिए आप ही आदमी (इंसान )बन जाइए | “यह सुनते ही सेठजी सकते में आ गए | बात का मर्म समझते ही उन्होंने उस व्यक्ति को पानी पिलाया व सेवा का अर्थ भी समझा | सेवा ही धर्म के प्रेरणादायक भरे एवं कई ललित निबंधों के प्रसंगों से जीवन दृष्टी
#संजय वर्मा ‘दृष्टि’
परिचय : संजय वर्मा ‘दॄष्टि’ धार जिले के मनावर(म.प्र.) में रहते हैं और जल संसाधन विभाग में कार्यरत हैं।आपका जन्म उज्जैन में 1962 में हुआ है। आपने आईटीआई की शिक्षा उज्जैन से ली है। आपके प्रकाशन विवरण की बात करें तो प्रकाशन देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाओं का प्रकाशन होता है। इनकी प्रकाशित काव्य कृति में ‘दरवाजे पर दस्तक’ के साथ ही ‘खट्टे-मीठे रिश्ते’ उपन्यास है। कनाडा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता की है। आपको भारत की ओर से सम्मान-2015 मिला है तो अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी सम्मानित हो चुके हैं। शब्द प्रवाह (उज्जैन), यशधारा (धार), लघुकथा संस्था (जबलपुर) में उप संपादक के रुप में संस्थाओं से सम्बद्धता भी है।आकाशवाणी इंदौर पर काव्य पाठ के साथ ही मनावर में भी काव्य पाठ करते रहे हैं।