समाज के प्रति साहित्यकारों का दायित्व

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paras nath

सादर नमन मंच !

आज के दौर में साहित्य और साहित्यकारों का साख गिरता प्रतीत हो रहा है , कारण है कोई न पढ़ना चाहता है न सुनना और न ही समझने की जरुरत समझता है  । सोशल मीडिया और इंटरनेट के जमाने में हम फेक न्यूज़, उन्मादी वीडियो , तथा नग्नता भरे चित्रों के आदी होते जा रहें हैं ।
लोगों को यह भी पता है कि *साहित्य समाज का दर्पण है*। फिर भी वे साहित्य पर ध्यान नहीं देते इसके  कुछ हद तक साहित्यकार भी जिम्मेदार हैं। क्योंकि हम उनको अपनी रचना से आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं व उनमें साहित्य के प्रति रूचि पैदा नहीं कर पा रहे हैं । समाज में साहित्य के प्रति रूचि पैदा करने  हेतु जन- जागरूकता की भी जरूरत है जिसमें समाज के जिम्मेदारों को भी आगे आना चाहिये । जगह-जगह गोष्ठियां, चर्चा-परिचर्चा व काव्य पाठ का आयोजन कराना अति आवश्यक है । युवाओं को साहित्य में रूचि लेने हेतु प्रेरित करना व साहित्यकारों को समय-समय प्रोत्साहित करना जिम्मेदारों का दायित्व बनता है ।
वहीं साहित्यकारों को सच को अपनी रचना में जगह देने की आवश्यकता है न कि किसी की चाटुकारिता । समाज में घुसी बुराईयों को परिष्कृत करने हेतु व्यंग बाण चलाना ही चाहिये । किसी पूर्वाग्रह से सदैव बचना होगा । किसी दायरे में न बंधकर अपनी चिंतन को व्यापक आयाम देना अच्छे साहित्यकारों का द्योतक है । किसी भी साहित्यकार को समाज,राज्य व राष्ट्र के शासन-प्रशासन का समालोचना भी करना चाहिये ताकि वे अपनी कमी से अवगत हों और शासक व प्रशासक अपने कार्यों को और बेहतर कर सकें । हाँ साहित्यकार को निर्भीक अवश्य होना चाहिये और इसमें समाज के लोगों को सहयोग करना चाहिये ।

#पारसनाथ जायसवाल ‘सरल’
मनकापुर गोण्डा ।

matruadmin

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