बस का टिकट

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geeta diwedi
रोज की की भाँति आज भी रेखा स्कूल से जैसे ही घर पहुँची कि सुभाष ने तपाक से पूछा । आज भी बस से आयी न , किसी और की गाड़ी से तो नहीं ?…….. प्रतिउत्तर में रेखा ने कुछ न कह , चुपचाप अपना बैग खोला और उसमें से बस की दो टिकटें निकाल कर सुभाष के हाथ पर रख दिया । फिर भर आयीं आँखों को छिपाने का प्रयास करती हुई , भारी कदमों से बाथरूम की ओर चली गई । इधर सुभाष ने उन टिकटों  को ऐसे देखा जैसे कि वो रेखा के  ‘चरित्र प्रमाण -पत्र हों । और उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव उभर आए । उसी समय उसकी आठ वर्षीय बेटी  रोली , खिलखिलाते हुए सुभाष के नजदीक आयी तो उसने रोली को  गोद में बैठा लिया , और पुचकारते हुए पूछा …. मेरी बिटिया रानी बड़ी होकर क्या बनेगी ?  तब रोली ने हँसते हुए कहा – डॉक्टर !  फिर अपनी बालसुलभ उत्सुकता से पूछा …… पापा पर क्या मम्मी की तरह मुझे भी  दो टिकटें  रोज घर लानी होगी ? पर सुभाष के पास रोली के इस प्रश्न का कोई उत्तर न था । वो  तो बस उसे अपलक ताकता ही रह गया ।
श्रीमती गीता द्विवेदी 
सिंगचौरा(छत्तीसगढ़)
मैं गीता द्विवेदी प्रथमिक शाला की शिक्षिका हूँ । स्व अनुभूति से अंतःकरण में अंकुरित साहित्यिक भाव पल्वित और पुष्पीत होकर कविता के रुप में आपके समक्ष प्रस्तुत है । मैं इस विषय में अज्ञानी हूँ रचना लेखक हिन्दी साहित्यिक के माध्यम से राष्ट्र  सेवा का काम करना मेरा पसंदीदा कार्य है । मै तीन सौ से अधिक रचना कविता , लगभग 20 कहानियां , 100 मुक्तक ,हाईकु आदि लिख चुकी हूं । स्थानीय समाचार पत्र और कुछ ई-पत्रिका में भी रचना प्रकाशित हुआ है ।

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