बेरोजगार

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niraj tyagi
बेरोजगार हो गया मन,अब याद किसी की आती नही।
मृत हो गए सारे सपने,अब नींद आँखो को आती नही।।
बेशर्म हो गए होठ,अब अपमान पर चेहरे पर हँसी है आती।
थक गए है अब कदम , बेशर्म मंजिल पास नही है आती।।
अब अपने मन को कैसे फिर से मैं काम पर लगाओ।
अपमानित यादों के वो क्षण फिर से चलो जगाओ।।
चले  गये  है  जो  लम्हे  वो  कभी  वापस ना आते है।
बेशक भर जाए घाव,पर अपना निशान छोड़ जाते है।।
#नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश )

matruadmin

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ग़ज़ल की दुनिया का मुकम्मल शेर है अज़ीज़ अंसारी

Mon Nov 26 , 2018
जैसा नाम वैसा ही स्वभाव, वैसी ही आत्मीयता, वैसा ही निश्छल स्नेह, वैसी ही शांति और सरलता की प्रतिमूर्ति और सबसे बड़ी बात तो यह की ग़ज़ल के मायनेजब तो समझाते है तो लगता है खुद ग़ज़ल बोल रही है कि मुझे इस मीटर में, इस बहर में, इस रदीफ़ और इस काफिये के साथ लिखो। हम बात कर रहे है इंदौर के खान बहादूर कम्पाउंड में रहने वाले अज़ीज़ अंसारी साहब की जो वर्ष २००२ की मार्च में आकाशवाणी इंदौर से केंद्र निदेशक के दायित्वसे सेवानिवृत हुए हैं पर उसके बाद भी अनथक, अनवरत और अबाध गति से साहित्य साधना में रत हैं। हिंदी–उर्दू की महफ़िल और अदब की एक शाम कहूँ यदिअंसारी जी को तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लगभग १० से अधिक किताब और सैकड़ों सम्मान जिनके खाते में हो, कई वामन तो कई विराट कद को सहजस्वीकार करते, नवाचार के पक्षधर, अनम्य को सिरे से ख़ारिज करने के उपरांत हर दिन होते नव प्रयोगों को सार्थकता से अपनी ग़ज़ल, अपनी जबान और अपनेलहजे में उसी तरह शामिल करते हैं जैसे पानी में नमक या शक्कर।  ७ मार्च १९४२ को मालवा की धरती इंदौर में पिता श्री ईदू अंसारी जी के घर जन्मे अज़ीज़ अंसारी जी वैसे तो एमएससी (कृषि), डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशनएन्ड रूरल जर्नलिस्म तक अध्ययन कर चुके हैं और बचपन से उर्दू–हिन्दी साहित्य में रूचि रखते हैं। सन १९६४ से साहित्य की जमीन पर गोष्ठियों के माध्यम सेसक्रियता की इबारत रच रहे हैं। जहाँ साहित्य के झंडाबरदार साहित्य के गलीचे को जनता के पांव के नीचे से खसकाने वाले बन रहे है और अस्ताचल की तरफबढ़वाना चाह रहे है पर ऐसे ही दौर में अंसारी जी नए जोश और उमंग के साथ नवाचार का स्वागत करते हैं। साफगोई और किस्सों की एक किताब जो बच्चों को भी उसी ढंग से हौसला देते हैं जैसे तजुर्बेदारों या कहूँ विधा के झंडाबरदारों को टोकते हैं उनकी गलती पर।  बात जब हाइकु की हुई तो अंसारी जी कहते है कि ‘सलासी‘ जानते हो? उर्दू में सलासी भी तीन लाइन में लिखे शेर हैं जिसमें रदीफ़ भी होता है और काफिया भीमिलता है। #डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’ परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी […]

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।