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बहू मैं तुम्हारे घर की
बेटी बनाकर रखना
दुल्हन हूँ,तूम्हारे बेटे की
पलकों पर बैठाकर रखना
निकली हूँ पिता के दर से
डोली अरमानों की सजाकर
खुशियाँ सदा परोसना
गोदी मे अपनी बैठाकर
आई हूँ माता-पिता की
चौखट को लांघकर
दिल मे बैठाकर रखना
बेटी अपनी समझकर
खुश्बू हूँ, मैं चमन की
घर खुश्बू से महका दुंगी
आँगन को तुम्हारे, मैं
फूलों से सजा दुगी
देना प्यार मुझको
कभी कम न होने देना
आसुओं को मेरे
हथेली पर उठा लेना
लिये हैं साथ फेरे
सात वचनो को निभाऊँगी
कदम जो पड़े है घर में
कभी न लड़खड़ाऊँगी
दुनिया सदा कहती है
बेटी होती है पराई
बेटी तुम्हारी बनकर
झुठला दुंगी यह सच्चाई
दोनो तरफ के रिश्ते
ऐसे ही निभाऊँगी
बेटी बनकर आई हूँ
बेटी बनकर ही जाऊँगी
#कविता धनराज वाणी
परिचय-
1.श्रीमती कविता वाणी
प्राचार्य कन्या शिक्षा परिसर
जोबट विकास खण्ड
जोबट जिला-अलीराजपुर
(मध्यप्रदेश)
(मूल निवास जोबट)
जन्म स्थान- जोबट
पति का नाम -धनराज वाणी
शिक्षक व कवि (वीर रस)
2.शिक्षा-एम.ए.बी.एड.
(समाजशास्त्र/अंग्रेजी)
3.रुचि-साहित्य व रचनाकार
गीत व कविताओं की रचना
महिला सशक्तिकरण पर
विशेष….
4.उपलब्धियां-आकाशवाणी
इंदौर से अनेको बार काव्य
पाठ किया व साहित्यिक
मंचो का संचालन भी
किया
5.बचपन से साहित्य व
लेखन में रुचि
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Tue Nov 20 , 2018
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