इश्क

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न दिल मेरा लगता है
न मन मेरा लगता है।
हुआ है जब से इश्क
सब बेकार लगता है।
इसलिए तो इश्क एक
बहुत बड़ा रोग होता है।
जिसे लग जाये वो
सदा बीमार रहता है।।

जमाने में हमने बहुत
आशिक और दीवाने देखे।
जो बस एक ही धुनी
रमाते रहते है।
न जीते है न मरते है
अपने में खोये रहते है।
और इश्क को ही
अपना मसीहा समझते है।।

डगर आसान नहीं होती
इश्क को करने वालो की।
बिछे है पग पग पर कांटे
तो चुभन सहना पड़ेगा।
और अपने इश्क पर
दाग नहीं लगाने दूँगा।
और अपने प्यार को
अमर कर जाऊंगा।।

जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुम्बई)

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