पेड़ 

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arun patel
सारी सर्दी  तुमने सहा है
सिर उठाकर खिल खिलाकर
और गर्मी  भी सह गए
जेठमास की,उफ़ तक न की
और पूरी बरसात
खड़े खड़े भीगकर विता दी
तूफानी हवाओ से टकराये
और तुम्हारा कुछ न बिगड़ा
लेकिन न जाने क्यों
तुम्हे आदमी ने काटकर
 जमीन पर पटक दिया
झौंर बौर सहित
और कुछ दिनों बाद
तुम फिर हरे भरे हो गए
कल्ले भी निकले
और कपोलें भी
आज तुमने एक फूल को भी जन्मा
उसी की सुगंध चारों ओर महकी
तब मुझे पता लगा तुम कितने  बेशर्म हो
जब सारी दुनिया सोती है तुम आसमान की तरफ
सिर उठाए झिलमिलाते सितारों को
देख रहे होते हो
 न जाने क्या मन ही मन
सोच रहे होते हो
तुम्हारी मौन भाषा मैं पहचानता हूं
तुम्हारे अंदर क्या है मैं जानता  हूँ
कि आदमी ने तुम्हे व्यर्थ ही काटा
अब वही उठाएगा घाटा
जब तुम नहीं होंगे
तो बसंत कैसे आएगा
जेठमास की तपती दोपहरी मे
ठंडी हवा के झोंके कौन लाएगा
तुम नहीं होंगे तो फ़ागुन कौन लाएगा
होली दिवाली और सावन नहीं आयेंगे
तब इस धरती पर कुछ नहीं होगा
शायद आदमी भी नहीं।
#अरुण पटेल
लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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