*नवरात्रि : स्त्री शक्ति*

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vani barthakur
       भारत में जब शरद ॠतु का आगमन होता है तब मौसम सुहावना हो जाता है । इस समय ना तो ज्यादा गर्मी और ना ही ठंड होती है । वर्षा ऋतु में बारिश धरा को धोकर साफ कर देती है, इसलिए शरद में धरा साफ होती है । इस समय नीले आसमान पर सफेद बादल मंडराते हैं। मीठे मलय बहने लगता है। चमेली की खुश्बू से दिग्दिगंत महक जाता है । तभी अहसास होता है कि धरा पर माँ दुर्गा का आगमन होने वाला है । आश्विन महीने की शुक्ल प्रतिपदा से नौ दिनों तक माँ दुर्गा का आह्वान करते हैं, इसे नवरात्रि कहते हैं। आइए जानते हैं कि “नवरात्रि” क्या है ?
     ‘ नवरात्रि’ एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है ‘नौ रातें’ । नवरात्रि पर्व के दौरान इन नौ रातें और दस दिनों के दौरान शक्ति को देवी के नौ रूपों में पूजा जाता है ।दसवाँ दिन दशहरा नाम से जाना जाता है । नवरात्रि वर्ष में चार बार आती है । पौष ,चैत्र, आषाढ़ और आश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है । इन नौ रातों में महालक्ष्मी, महासरस्वती, और माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है , जिसे नव दुर्गा भी कहते हैं। दुर्गा का मतलब है दुर्गति हटाने वाली । प्रतिपदा से नवमी तिथि तक क्रम अनुसार देवी के नौ रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं ।
       नवरात्रि एक हिन्दू पर्व है, शक्ति की उपासना का पर्व। शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा शक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है । सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने समुद्र तट पर शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ किया था । इसके बाद दसवें दिन रावन को मारकर लंका पर विजय प्राप्त करने के साथ-साथ सीता मैया की उद्धार किया ।
      नवरात्र के पहले दिन घट स्थापना कर दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना की जाती है । भक्त पूरे नौ दिन व्रत रखकर दुर्गा माँ की पूजा करते हैं। सम्पूर्ण नवरात्रि अखंड दीप जलाकर माँ की स्तुति की जाती है और उपवास रखा जाता है । नवरात्र के अंतिम दिन कन्याओं को भोजन कराकर यथायशक्ति दक्षिणा देकर व्रत की समाप्ति की जाती है ।
      शक्ति उपासना का भारतीय चिंतन में बहुत बड़ा महत्व है। शक्ति ही संसार का संचालन कर रही है। शक्ति के बिना शिव को भी शव की तरह चेतना शून्य माना गया है।  स्त्री और पुरुष शक्ति और शिव के स्वरूप ही माने गए हैं। भारतीय उपासना में स्त्री तत्व की प्रधानता पुरुष से अधिक मानी गई है। स्त्री शक्ति की चेतना का प्रतीक है। साथ ही यह प्रकृति की प्रमुख सहचरी भी है जो जड़ स्वरूप पुरुष को अपनी चेतना प्रकृति से आकृष्ट कर शिव और शक्ति का मिलन कराती है। साथ ही संसार की सार्थकता सिद्ध करती है।
     इतिहास में देखा जाए तो परमहंस देव भी भगवती आदिशक्ति की आराधना कर अपने कार्यों का संपादन करते थे। त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने रावण आदि दुष्टों का दमन करने से पूर्व भगवती भवानी की आराधना से विजय की शक्ति प्राप्त की। कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कृत “राम की शक्ति पूजा” काव्य में इसका विशेष महत्व आधुनिक युग के विचारकों के लिए चिंतन का विषय रहा। शास्त्रों के अनुसार शिव और शक्ति सनातन हैं उनकी शक्ति भी सनातन है। जिनकी आराधना करने पर मंगल होता है । छत्रपति शिवाजी ने भगवती भ्रमरम्वा भवानी की आराधना से शक्ति अर्जित कर अत्याचारियों से विजय प्राप्त किया।महाराणा प्रताप भी भगवती चामुंडा की विशेष आराधना किये था। इसी प्रकार इतिहास को देखा जाए तो शक्ति आराधकों के उदाहरणों से भरा हुआ है जो हमें विश्वास दिलाता है कि राष्ट्र और धर्म को बचाते हुए परम पुरुषार्थ को प्राप्त करना है तो शक्ति की आराधना करनी ही होगी।
        स्त्री-पुरुष दोनो एक दूसरे की परिपूरक है । स्त्री शक्ति के बगैर पुरुषत्व का कोई अस्तित्व नही । अगर संसार को जीवित रखना है तो स्त्री शक्ति को अवतरण करना जरूरी है । नवरात्रि पूजा का भी यही महत्व है कि संसार के हर स्त्री को पूजा करना अर्थात सम्मान करने से ही संसार से बुराइयों के विनाश अवश्यंभावी है । इसलिए , हे पाठकवर्ग नवरात्रि पर्व, केवल एक पर्व ना मानते हुए इतिहास को अध्ययन तथा उपरोक्त बातों पर गौर फरमाया और स्त्री शक्ति को समझे । स्त्री में इतनी शक्ति है कि पल में सबकुछ विनाश कर सकते है ।
#वाणी बरठाकुर ‘विभा’
परिचय:श्रीमती वाणी बरठाकुर का साहित्यिक उपनाम-विभा है। आपका जन्म-११ फरवरी और जन्म स्थान-तेजपुर(असम) है। वर्तमान में  शहर तेजपुर(शोणितपुर,असम) में ही रहती हैं। असम राज्य की श्रीमती बरठाकुर की शिक्षा-स्नातकोत्तर अध्ययनरत (हिन्दी),प्रवीण (हिंदी) और रत्न (चित्रकला)है। आपका कार्यक्षेत्र-तेजपुर ही है। लेखन विधा-लेख, लघुकथा,बाल कहानी,साक्षात्कार, एकांकी आदि हैं। काव्य में अतुकांत- तुकांत,वर्ण पिरामिड, हाइकु, सायली और छंद में कुछ प्रयास करती हैं। प्रकाशन में आपके खाते में काव्य साझा संग्रह-वृन्दा ,आतुर शब्द,पूर्वोत्तर के काव्य यात्रा और कुञ्ज निनाद हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिका में सक्रियता से आती रहती हैं। एक पुस्तक-मनर जयेइ जय’ भी आ चुकी है। आपको सम्मान-सारस्वत सम्मान(कलकत्ता),सृजन सम्मान ( तेजपुर), महाराज डाॅ.कृष्ण जैन स्मृति सम्मान (शिलांग)सहित सरस्वती सम्मान (दिल्ली )आदि हासिल है। आपके लेखन का उद्देश्य-एक भाषा के लोग दूसरे भाषा तथा संस्कृति को जानें,पहचान बढ़े और इसी से भारतवर्ष के लोगों के बीच एकता बनाए रखना है। 

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