अपनों की चोट….

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surendra
सोने के टुकड़े की लोहे के टुकड़े से होती है मुलाकात,
वो करते हैं एक-दूसरे से मीठी-मीठी बात।

सोने का टुकड़ा कहता है-
तू इतना क्यों चीखता-चिल्लाता है,जब तुझे लोहे के हथौड़े की मार पड़ती है,
मैं इतना नहीं चीखता-चिल्लाता हूँ, जब मुझे पीतल के हथौड़े की मार पड़ती है।

तुझे भी गरम करके छुरी,चाकू-तलवार बनाते हैं,
मुझे भी गरम करके चूड़ी-कंगन और हार बनाते हैं।

यह सुनकर लोहे के टुकड़े का गला भर जाता है,कहता है मैं तुझे इसकी हकीकत बताता हूँ-
जब मुझे लोहे के हथौड़े से चोट पड़ती है,तो क्यों इतना चीखता-चिल्लाता हूँ,
क्योंकि तुझे गैरों द्वारा और मुझे मेरे अपनों द्वारा चोट दी जाती है।

गैरों की चोट तो सह सकते हैं यारों, लेकिन अपनों की चोट सही नहीं जाती है।

         #सुरेन्द्र ठाकुर ‘अज्ञानी जी’

matruadmin

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