
दीनदयाल ने अपने दोनों बेटे और एक बेटी की पढ़ाई में अपनी पूरी पूँजी झोंक दी, ताकि जो कष्ट उसने उठाया उसके बच्चों को न उठाना पड़े l जब बेटी मात्र दो वर्ष की थी तब उसकी पत्नी का देहांत हो गया था l तब से अब तक वह केवल अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देने में लगा रहा l पढ़ाई पूरी करने के बाद बड़ा बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर के पोस्ट पर कार्य करने लगा और उसी कंपनी में काम करने वाली लड़की से शादी करके वहीं बस गया l कभी कभी पिता से मिलने आता l छोटा लड़का एम बी बी एस करके विदेश में ही रहने लगा था l उसने दीनदयाल को सूचित कर दिया था कि अगले माह वह वहीं की लड़की से शादी कर रहा है l सबसे छोटी बेटी की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी, दीनदयाल चाहता था कि वह कम से कम उसकी शादी अच्छे से कर देl जब उसने अपनी बेटी से उसकी शादी के बारे में पूछा तो उसने कहा कि उसे अभी शादी नहीं करनी है, उसे अपने पैरों पर खड़ा होना है और नौकरी करने के लिए बेटी भी जिद्द करके विदेश चली गयी l दीनदयाल ने किसी बच्चे को नहीं रोका, जो उन्हें ठीक लगा,वही करने दिया l
परिचय : झारखंड के सरायकेला खरसावाँ जिले के अंतर्गत हथियाडीह में 14 नवम्बर 1978 ई0 में जन्म हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल में हुआ। उच्च शिक्षा डी बी एम एस कदमा गर्ल्स हाई स्कूल से प्राप्त किया और विश्वविद्यालयी शिक्षा जमशेदपुर वीमेन्स कॉलेज से प्राप्त किया। कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में पत्र प्रस्तुत किया ।ज्वलंत समस्याओं के प्रति प्रतिक्रिया विविध पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। प्रतिलिपि और नारायणी साहित्यिक संस्था से जुड़ी हुई हैं। हिन्दी, अंग्रेजी और बंगला की जानकारी रखने वाली सम्प्रति ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय में पदस्थापित हैं और वहाँ के छात्र -छात्राओं को हिन्दी की महत्ता और रोजगारोन्मुखता से परिचित कराते हुए हिन्दी के सामर्थ्य से अवगत कराने का कार्य कर रहीं हैं।