सावन और साजन

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घोर घटाएं जब घिरने लगती है,
तुम्हारी याद मुझे आने लगती है।
रिम झिम रिम झिम जब बादल बरसे,
मिलन की आस सताने लगती हैं।।

साथ न हो सावन में साजन का,
दिल में घुटन सी होने लगती है।
बिन साजन सावन की भीगी राते,
मुझको दुश्मन सी लगने लगती है।।

दमकती है दामिनी जब नभ में,
मुझको डर लगने लगता है।
कही ये मुझ पर न गिर जाए
ऐसा आभास होने लगता है।।

होती हवा से आहट द्वार पर,
ऐसा भ्रम मुझे होने लगता है।
आए होगे साजन मेरे द्वार पर,
फिर मन मुस्कराने लगता है।

बिन साजन के सावन सूखा,
भले ही बादल बरसते हो।
ऐसी बारिश का क्या है लाभ
जब नैन साजन के लिए तरसते हो।।

पड़ती है जब नन्ही नन्ही बन्दे,
तन सिहरने मेरा लगता है।
कैसे समझाऊं मै इस मन को,
मुझको मुझसे डर लगने लगता है।।

आर के रस्तोगी
गुरुग्राम

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