सपनीली सुबह

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अंधकार था रात घना
पर सुबह बड़ी सपनीली है
जितना काला अंधियारा था
उतनी यह रंगीली है
अभी इसे तुम छुओ नहीं
यह अभी ज़रा सी गीली है
सूरज अभी नहीं आया है
थोड़ी सीली – सीली है।
सूरज की लाली देखो अब
कहीं – कहीं पर पीली है ।
कानों में चुपके से आकर
 नयी सुबह यह कहती है।
आलस छोड़ द्वार खड़ी इक
आशा नयी रुपहली है ।
#मंजु सिंह

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