केरल

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kanheya sahu
जल आपदा बढ़ता गया, जीवन यहाँ घटने लगा।
धरती कभी बगिया रही, केरल वही पटने लगा।
सौ साल में वर्षा नहीं, ज्यादा जलद फटने लगा।
जलमग्न ये दक्षिण धरा, संपर्क अब कटने लगा।
सैनिक बहादुर हैं बड़े, डरते नहीं सैलाब से।
विपदा उपर से बरसती, कमतर कहाँ तेजाब से।
कुदरत कहर ढाती चले, रक्षक डँटें जी जान से।
आफत टले विनती करें, अपने ईष्ट भगवान से।
परिचय
कन्हैया साहू “अमित”
साहित्यिक नाम~अमित सिंगारपुरिया
 बलौदाबाजार(छत्तीसगढ़)
शिक्षा~एम.ए.हिन्दी साहित्य+अंग्रेज़ी +बी.एड
कार्यक्षेत्र~सहायक शिक्षक शासकीय विद्यालय
विधा~ आलेख एवं छंद सृजन
प्रकाशन~कुछ भी नहीं
लेखन का उद्देश्य~साहित्य साधना

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