जरूरी था

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babulal sharma
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ध्रुवकवि,कवि कुल भूषण,
देश हितों  में वह युग पुरुष,
तब आना बहुत जरूरी था,
वह महानायक विश्व पटल,
दैव हितों में वह महा पुरुष,
फिर जाना और जरूरी था।
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हे जन नायक  राष्ट्रपूत प्रिय,
इस पावन भारतभू आँचल।
कोटि  कोटि जन  मन  हित,
जैसे अडिग  महा हिमाचल।
राष्ट्र एकता  रखने   खातिर,
जब  वातावरण  सरूरी  था,
तब आना  बहुत जरूरी था।
🌹🌹
हे अटल बिहारी  वाजपेयी,
हे  भारत  माँ  के महा पूत।
जब मातृभूमि बंदिश में थी,
सह रही अत्याचार  अकूत।
उन छालों को  सहलाने को,
तब  तेरा जनम  जरूरी था,
तब आना बहुत जरूरी था।
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अंग्रेजों  का प्रबल  जोर  था,
संघर्षण  का कठिन दौर था।
जागा  भारत  जागी  जनता,
आजादी  का नवल बौर था।
सरकारों  के  सबल  शोर में,
सहज   विपक्ष   जरूरी  था,
तब आना  बहुत जरूरी था।
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शासन  सरकारी  सत्तापोशी,
नेताओं  में ही  हो  मदहोंशी।
दल  दलदल बन  खदक रहे,
तब कौन दिखाए सत होशी।
निरंकुशों  पर  अंकुश रखने,
जब प्रबल विरोध जरूरी था,
तब  आना बहुत जरूरी था।
🌹🌹
सरकारों   की  ना  इंसाफी,
दलीय  फूट फैलती  काफी।
राजधर्म की कठिन घड़ी में,
जनता भी खो धीरज हाँफी।
जनगण मन की इच्छापूरित,
जब कंटक ताज जरूरी था,
तब आना बहुत जरूरी था।
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षडयंत्र विदेशी गहराए होते,
सीमा पर टकराव नित होते।
भारतरत्न का फर्ज निभाना,
धैर्य अटल कभी नहीं खोते।
विश्व मंच चढ़ जाने  खातिर,
जब परमाणु बम जरूरी था,
तब आना बहुत जरूरी था।
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करगिल  घाटी  सुलगी थी,
भारत माँ  वेदी  मचली थी।
तब भारत रत्न  हूँकार भरे,
सेना भी हमारी सजती थी।
करगिल  विजय के संग में,
अरि  पर खौफ जरूरी था,
तब आना बहुत जरूरी था।
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जीवन समर समर्पित करना,
देश के अपने धार में चलना।
तूफानों से कब क्यों घबराएँ,
सतत राष्ट्र चिंतन रत रहना।
समय नजाकत  चिन्हित हो,
दमभी दिखलाना जरूरी था,
तब आना बहुत जरूरी था।
🌹🌹
धरती पर ध्रुव अटल कहाएँ,
ये अटलध्रुव पटल पर छाए।
सत कर्मो  सद  व्यवहारो़ंं से,
अटलध्रुव गगन ही पा जाए।
छितिजलपावकगगनसमीरा,
जीर्ण महल जब हुये शरीरा।
फिर मौसम खूब सरूरी था,
तब जाना बहुत जरूरी था।
🌹🌹
अब भी तो फर्ज सिखाने है,
जब स्वर्गिक बने ठिकाने है।
अगले जन्म की तैयारी कर,
देश से भावि नेह निभाने है।
अटल हर कदम गरूरी था।
जब  परम धाम जरूरी था।
तब जाना बहुत जरूरी था।
यह  गाना बहुत जरूरी था।
यह  गाना बहुत जरूरी था।
🌹🌹
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नाम बाबू लाल शर्मा 
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।