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जागो नौजवानों जागो
उठो एक क़दम बढ़ाओ
आगे आओ तुम सब
एक *क्रांति* सी ले आओ
पूरी धरा को आच्छादित
तुम कर जाओ वृक्षों से
दूर करो *तुम पीर धरा* की
बहते आसूँ हैं इसके
जो दिखते न हर किसी को
सहती आई है धरा
देख रही असहाय खड़ी
अपने ही वृक्षों का होते विनाश
दर्द न इसका किसी को पता
कराहती अकेली खड़ी धरा
सीना फाड़ चित्तकार रही
न काटो मेरे वृक्षों को
करुण रुदन कर रही
कह रही सबसे आज धरा
पल्लवित कर दो आज तुम
मेरी सूनी गोद के हर एक कोने को
#अदिति रूसिया
वारासिवनी
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