एकता में बल

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kaji
 अभिजीत, प्रथम , मुस्कान और संजय बहुत अच्छे दोस्त थे । माधौपुर की पाठशाला में सभी कक्षा ९ वीं में पढ़ते थे । मुस्कान को तीनों दोस्त अपनी छोटी बहन मानते थे । मुस्कान अनाथ थी और गांव सूरजगढ़ में मौसी के साथ रहती थी । प्रतिदिन चार किलोमीटर पैदल चलकर माधौपुर आती थी ।
अभिजीत सब मित्रों में बढ़ा था   एवं उसके पिता अनाज व्यापारी थे । प्रथम के पिता शहर में नौकरी करते थे । वह अपनी मां और छोटे भाई के साथ रहता था । संजय थोड़ा शरारती ज़रूर था परंतु बुद्धिमानबहुत था ।
 चारों की दोस्ती की कसमें ,पूरा माधौपुर खाता था ।  दिन गुजरते गए और उनकी मित्रता के किस्से आसपास के गांवों में भी सुनाई देने लगे ।
 बारिश का मौसम था । जिसकी वजह से स्कूल की छुट्टी मध्यांतर में ही हो गई । मुस्कान को फ़िक्र थी कि अपने गांव कैसे पहुंचे । तीनों दोस्तों ने विचार कर यह निर्णय लिया कि वे मुस्कान को सुरक्षित, उसके गांव पहुंचा देंगे ।
तीनों दोस्त बिना अपने परिजनों को बताये मुस्कान को छोड़ने चल पड़े ।
  बारिश अचानक तेज़ हो गई । रास्ते में पड़ने वाली छोटी सी नदी का पुल पानी के बहाव से बह चुका था । अब चिंता इस बात की थी कि मुस्कान को उस पार उसके गांव सूरजगढ़ कैसे भेजें । नदी में पानी ज्यादा था लेकिन वेग कम हो गया था । अभिजीत अच्छा तैराक था और प्रथम भी थोड़ा बहुत तैरना जानता था , परंतु मुस्कान और संजय को तो पानी के बहाव से ही डर लगता था । शाम ढलने को थी । अचानक संजय को वहां पड़े बांस के मजबूत टुकड़े दिखे ,बस फिर क्या था । कम्प्यूटर से तेज दिमाग वाले संजय ने उन लकड़ियों को एकजुट किया शायद वो जंगल में काम करने वाले लकड़हारे बारिश के डर से वहीं छोड़ गए थे । प्रथम के बेग में रस्सी थी क्योंकि वह स्काउट का छात्र था । उसने और संजय ने एक नाव तैयार कर ली । चारों उस पर सवार होकर उस पार के लिए रवाना हुए । मुस्कान, संजय , प्रथम बारी बारी से नाव खै रहै थे । भूख से बेहाल उनका शरीर थक चुका था । मगर किस्मत भी उसी का साथ देती है जो लड़ना जानता है । साहस , सफलता का दरवाजा है । काफी देर तक जल धाराओं के बीच गुजारते हुए अंततः सूरजगढ़ का तट आ ही गया । मुस्कान की मौसी और अन्य गांव वाले चार बच्चों को एक छोटी नाव पर आते देख हैरत में पड़ गए । लेकिन बच्चे अपनी एकता के बल पर नदी जैसी रुकावट को भी पार कर आये ।
  गांव वालों ने बच्चों को उतारा , बहुत थक चुके थे चारों ही , परंतु एकता और अदम्य साहस के बलबूते पर अपनी मंजिल तक पहुंच गए ।
  मुस्कान की मौसी ने सभी को पूड़ी और छोले की सब्जी बनाकर खिलायी । चारों ने पेटभर खाया और रात्रि विश्राम वहीं कर दूसरे दिन अपने गांव पहुंचे तब तक नदी का पानी भी उतर चुका था ।
बच्चों को उनकी एकता और अदम्य साहस के लिए स्कूल में सम्मानित किया गया ।
 नैतिक शिक्षा – कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि एकता के सूत्र में बंधे रहें और हौसला बनाए रखें ।

           #डॉ.वासीफ काजी

परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए किया हुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।

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