जुगनूं

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चमक रहा था आसमान में,
रात अंधेरी वो बरसात में ।
एक बच्चे की जो पड़ी नज़र,
पकड़ लिया उसको जाकर ।

चमक दार कीड़ा था वो,
झम,झम जलता था वो ।
कीड़ा बोला उस बच्चे से,
मैं जुगनूं हूँ मुझे छोड़ दो।

चमक मेरी दिन में न रहती,
उजाले में वो गुम हो जाती।
बच्चा बोला तुम हो कमाल ,
छोडूंगा न मैं तुमको आज।

न तुम शोला न तुम आँच,
चमक तेरी मैं लुंगा जाँच ।
जुगनूं बोला कुदरत है जनाब,
ज़र्रे को जी करता माहताब।

मुझे ख़ुदा ने दी है चमक ,
तुम मुझपर न जताओ हक़।
छोड़ो मुझको जाने दो ।
जल ,बुझ कर उड़ जाने दो।

आसिया फ़ारूक़ी
फ़तेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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