कश्मीरः लात और बात, दोनों चलें

0 0
Read Time3 Minute, 26 Second
vaidik
कश्मीर में शस्त्र-विराम को विराम देकर भारत सरकार ने बिल्कुल ठीक कदम उठाया है। एक महिने तक चले इस एकतरफा शस्त्र-विराम का नतीजा क्या निकला ? सरकार और फौज ने तो हथियार नहीं चलाए लेकिन आतंकवादियों ने बड़ी बेशर्मी से अपनी खूरेंजी जारी रखी। 41 लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए। पत्थरबाजी भी चलती रही। सबसे दुखद बात यह हुई कि वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या की गई। इतना ही नहीं, इस एक माह में आतंकवाद की 50 घटनाएं हुईं जबकि पिछले माह में सिर्फ 19 घटनाएं हुई थीं। अर्थात आतंकवादियों ने शस्त्र-विराम का जमकर फायदा उठाया। इस बीच पाकिस्तान ने मई 2018 तक साल भर में 1252 बार युद्ध-विराम का उल्लंघन किया, जबकि 2017 में उसने 971 बार, 2016 में 449 और 2015 में 405 बार किया था। कुल मिलाकर शस्त्र-विराम की पहल बेकार सिद्ध हुई। उसे छोड़ना बेहतर हुआ लेकिन विरोधी दलों के इस बयान में कुछ दम जरुर मालूम पड़ता है कि इस शस्त्र-विराम को लागू करनेवाली सरकार ने उसमें अपना दिमाग नहीं लगाया। शस्त्र-विराम के साथ-साथ अलगाववादियों से गुपचुप या खुले-आम संवाद चलाया जाना चाहिए था। पाकिस्तान से भी बात की जानी चाहिए थी, जैसा कि अटलजी ने किया था लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि इस सरकार के नेताओं की समझ काफी उथली है। अगर उन्हें इन कूटनीतिक बारीकियों का ज्ञान होता तो आज मालदीव, नेपाल, बर्मा और श्रीलंका जैसे पड़ौसी देश चीन की गोद में क्यों जा बैठते ? दुर्भाग्य यह है कि मोदी सरकार की अनुभवहीनता अपनी जगह है लेकिन उसमें साहस की भी बहुत कमी है। उसने कश्मीरियों के साथ संवाद करने के लिए एक सेवा-निवृत्त अफसर को जुटा रखा है। उसके पास योग्य लोगों का सर्वथा अभाव है। लेकिन कश्मीर में सख्त फौजी कार्रवाई करने से उसे कौन रोक रहा है ? वह ईंट का जवाब पत्थर से क्यों नहीं देती ? बात और लात वह साथ-साथ क्यों नहीं चलाती। वह फर्जीकल स्ट्राइक को सर्जिकल स्ट्राइक क्यों कहती है ? चेचन्या के इस्लामी उग्रवादियों का सफाया रुसी नेता पुतिन ने आखिर कैसे किया था ? कश्मीर के आतंकवादियों को जो भी मदद कर रहा हो, उसकी जड़ों में जब तक भारतीय फौज मट्ठा नहीं पिलाएगी, उसकी हर पहल, चाहे वह शस्त्र-विराम की हो या संवाद की, वह विफल हो जाएगी।
                       #डॉ. वेदप्रताप वैदिक

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

आँसू

Wed Jun 20 , 2018
अश्रु!  कितने  प्रकार  के  भाव  उत्पन्न करते हैं? दया? क्रोध? नफरत? आनंद? वात्सल्य?शोक? करुणा? गर्व? कायरता? न जाने अश्रु क्या क्या  करता हैं? रोते हैं  स्वार्थ सिद्ध के लिए. रोते   हैं   दया प्राप्त करने. रोते   हैं  शोक प्रकट करने? रोते हैं आनंद के लिए. रोते  हैं गलतीछिपाने […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।