हीरोइन राज्यसभा में प्रकट हुई,तो लगा वहां की धरा धन्य हो गई। आज सिर्फ एक आई,दूसरी शूटिंग में व्यस्त थी इसलिए आधी दीवारें उदास थीं,लेकिन इस हीरोइन को देखकर
बाकी दीवारें नाचने लगीं और प्रसन्नता के साथ मानो गीत गाने लगी,’घर आया मेरा परदेसी,प्यास बुझी इन अँखियन की..अब दिल तो तोड़ के मत जाना।’
हीरोइन के आते ही कुछ नेता बालों को सँवारने लगे। कुछ अपनी तोंद को अंदर करने लगे। कुछ के सिर पर मुट्ठीभर बाल थे,लेकिन उनके दिल की तरह ही काले थे। वे बालों को ठीक-ठाक करने लगे और लपककर हीरोइन के पास पहुंच गए।
एक ने कहा ‘हे हे हे हे, बहुत दिनों के बाद आना हुआ।आते रहा कीजिए न। आपके आने से बड़ी ऊर्जा मिलती है। माँ कसम,दिल भी जवान हो जाता है ।’
हीरोइन बुढ़ापे की दुनिया में कदम रख चुकी थी, लेकिन मेकप की मदद से उसने झुर्रियों को छुपा लिया था। आंखों पर चढ़ा काला चश्मा और होंठों की सुर्ख लिपस्टिक जवानी के वसंत का भ्रम पैदा करने के लिए पर्याप्त थी। हीरोइन शरमा कर बोली, ‘अरे, ऐसा कुछ नहीं है। अब मुझमें वह बात कहां, जो वन्स अपॉन ए टाइम रहा करता था।’
एक मनचले नेता ने कहा -‘आप बड़ी वो हैं,झूठी। अरे,आज भी आपमें कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं आपकी। अंग- अंग वीणा के तार-सा कसा हुआ है।’
‘ओह रियली!’ हीरोइन शरमा कर जल-जल सी हो गई।
दूसरे नेता ने लढ़ियाते हुए पूछा,-‘ बहुत दिनों के बाद आई? तबियत तो ठीक है न ?’
हीरोइन बोली,-अरे बाबा,शूटिंग-वूटिंग थी नहीं। घर बैठे-बैठे बोर हो रही थी। अचानक ख्याल आया कि,मैं तो राज्यसभा की मेम्बर हूं। चलो, दिल्ली ही घूमकर आ जाएं। आप लोगों के दर्शन हो गए और आपको भी मेरा दर्शनलाभ मिल गया।’
नेता कुछ और पास आकर बोला,-‘क्या यह दर्शनलाभ स्थाई नहीं हो सकता। आपको देखो तो कुछ- कुछ होने लगता है। मां कसम,सदन में जोर-शोर से भाषण देने लगता हूँ। आप हम सबकी प्रेरक-रेखा हैं। प्लीज,आया करें। जब भी बैठक हो, सदन को धन्य करें। बाई द वे आज रात का क्या कार्यक्रम है ?’
हीरोइन शरमा कर बोली,-‘अब कहां कार्यक्रम ? अब तो क्रियाकर्म का समय आ गया है। नींद भी ठीक से नहीं आती। गोली लेनी पड़ती है। सादा जीवन उच्च विचार, भोग-वोग की क्या दरकार। एक समय था जब हम तरह-तरह के कार्यक्रम किया करते थे। चर्चा में बने रहते थे। शूटिंग में व्यस्त रहना,इंटरव्यूज देना,यही काम रहता था। टीवीवाले घेरेे रहते थे। अब तो घेरने के नाम पर आप जैसी आत्माएँ हैं,या चंदा मांगने वाले लोग। पिछले दिनों तो हद हो गई,एक सेठ जी आए और पूछने लगे ‘बोरीवली वाला अपना फ्लैट बेचेंगी क्या ?’ मैंने गुस्से में भड़कते हुए कहा,-‘चल फूट यहां से कर्मजले, मेरे पास पैसों की कमी नहीं है। मरा हुआ एलिफेंट भी सवा लाख का होता है और पुरानी हीरोइन भी लाखों कमा लेती है।’
इतना बोलकर हीरोइन मुस्कुराई। फिर पूछा,-‘अभी सदन में चल क्या रहा है?’
एक नेता कुछ जानकार टाइप का था। उसने बताया,-‘एक बिल पेश किया जाना है।’
इतना सुनना था कि हीरोइन चौंकते हुए बोली-‘ओ माई गॉड, यहां भी बिल? कितने का बिल? कैसा बिल? मेरे नाम का है? मैंने ऐसा कुछ तो खर्च ही नहीं किया,फिर बिल क्यों पेश किया जा रहा है?’
नेता ने हँसकर कहा,-‘अच्छा मजाक कर लेती हैं आप। यह बिल आपके लिए नहीं है,स्त्री सुरक्षा को लेकर है।’
‘स्त्री-सुरक्षा, बोले तो ?’ हीरोइन ने मासूम-सा सवाल किया, तो नेता मन-ही-मन गुस्से में भर गया,लेकिन हीरोइन के पास खड़े होने के कारण आनेे वाली खुशबू से वंचित नहीं होना चाहता था इसलिए बोला,-‘स्त्री-सुरक्षा मतलब लेडीज़ का प्रोटेक्शन, महिलाओं को हिंसा से बचाना।’
‘ओह,अब ये हिंसा बोले तो ?’ हीरोइन ने फिर पूछा। नेता ने धैर्य के साथ कहा,-‘वायलेंस।’
‘ओह,आई सी,वायलेंस।’
इतना बोलकर हीरोइन आगे बढ़ गई। नेता चमचत्वभाव के साथ पीछे-पीछे चल पड़े,जैसे किसी मेम के पीछे पालतू कूकुर चल पड़ते हैं। सदन की कार्रवाई का समय शुरु हो चुका था।
#गिरीश पंकज
परिचय : साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया में गत चार दशकों से सक्रिय रायपुर(छत्तीसगढ़) निवासी गिरीश पंकज के अब तक सात उपन्यास, पंद्रह व्यंग्य संग्रह सहित विभिन्न विधाओं में कुल पचपन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके चर्चित उपन्यासों में ‘मिठलबरा की आत्मकथा’, माफिया’, पॉलीवुड की अप्सरा’, एक गाय की आत्मकथा’, ‘मीडियाय नमः’, ‘टाउनहाल में नक्सली’ शामिल है। इसी वर्ष उनका नया राजनीतिक व्यंग्य उपन्यास ‘स्टिंग आपरेशन’ प्रकाशित हुआ है..उनका उपन्यास ”एक गाय की आत्मकथा’ बेहद चर्चित हुआ, जिसकी अब तक हजारों प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं. लगभग पन्द्र देशो की यात्रा करने वाले और अनेक सम्मानों से विभूषित गिरीश पंकज अनेक अख़बारों में सम्पादक रह चुके हैं और अब स्वतंत्र लेखन के साथ साहित्यिक अनुवाद की पत्रिका ”सद्भावना दर्पण ‘ का प्रकाशन सम्पादन कर रहे हैं।