समग्र के रोष के बाद,सत्य की समालोचना के बाद,दक्षिण के विरोध के बाद,समस्त की सापेक्षता के बाद,स्वर के मुखर होने के बाद,क्रांति के सजग होने के बाद,दिनकर,भास्कर, चतुर्वेदी के त्याग के बाद, पंत,सुमन,मंगल,महादेवी के समर्पण के बाद भी कोई भाषा यदि राष्ट्रभाषा के गौरव का वरण नहीं कर पाई तो […]
मातृभाषा
मातृभाषा
परिदृश्य चाहे वैश्विक हो,राष्ट्रीय हो,सामाजिक हो या पारिवारिक हो-कुछ भी करने से पहले यह प्रश्न हमेशा सालता है कि-`लोग क्या कहेंगे ?` उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी और इसका हमारे मूल्यों,सिद्धान्तों और जीवन पर क्या असर पड़ेगा! चिन्तन का पहलू यह होना चाहिए-हमको लोगों के कहने की कितनी परवाह करना चाहिए,क्योंकि […]
