नील सरोरुह बीच खड़ी। मणि,मुक्ता,माणिक की सी लड़ी॥ दीप्त वर्ण सुवर्ण चरी। नव कली भांति आभा निखरी॥ पुष्पभारनमिता कमणी। सद्यः स्नाता कमसिन रमणी॥ जब केशराशि लहराती है। ऐसा आभास कराती है॥ ज्यों नील गगन से श्यामा बदली। मानो बूंदें बरसाती है॥ […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा