सब करते हैं मांग यहां अधिकारों की, गिनती कम है लेकिन ज़िम्मेदारों की। झूठे लोग भी अब धरने पर बैठे हैं, ये रीति है एक यहां बीमारों की। सच्चाई की पौध लगाई गांधी ने, फसल उगी फिर कैसे खर-पतवारों की? हम क्यों ये गांधी-गांधी चिल्लाते हैं, जबकि गांधी चीज़ हुई […]
काव्यभाषा
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